SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 221
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०७ ___761 : ३०-२२] ३०. शौचनिरूपणद्वाविंशतिः 761) रत्नत्रयामलजलेन करोति शुद्धि' धित्वा जिनेन्द्रमुखनिर्गतवाक्यतीर्थम् । योऽन्तर्गत निखिलकममलं' दुरन्त प्रक्षाल्य मोक्षसुलमप्रतिमं स याति ॥ २२ ॥ इति शौचनिरूपण द्वाविंशतिः ॥ ३०॥ मुखनिर्गतवाक्यतीर्थ श्रित्वा रत्नत्रयामलजलेन शुचि करोति, सः अन्तर्गतं दुरन्तं निखिलकर्ममलं प्रक्षाल्य अप्रतिमं मोक्षसुखं पाति ॥ २२ ॥ इति शोचनिरूपणद्वाविंशतिः ॥ ३० ॥ तीर्थका आश्रय ले करके रत्नत्रयरूप निर्मल जलसे शुद्धिको करता है वह दुविनाश समस्त कर्मरूप अभ्यन्तर मलको धो करके अनुपम मोक्ष सुखको प्राप्त होता है ॥ २२ ॥ इसप्रकार बाईस श्लोकोंमें शौचका निरूपण हुआ। १ स orn. शुद्धि । २ स श्रुत्या, श्रुत्वा । ३ स °फलं । ४ स प्रfur स । ५ स निरूपणम् ।।
SR No.090478
Book TitleSubhashit Ratna Sandoha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorBalchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages267
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy