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________________ सिद्धान्तसार सेपक एवं पन्य अर्थात् लोकोसर मान चार प्रकार का कहा गया है ॥२८-३०।। चार प्रकार के लोकोसर मानों में प्रथम द्रव्यमान, द्वितीय क्षेत्रमान, तृतीय कालमान और चतुर्थ भावमान है ।।३।। प्रब द्रव्यमान के भेव प्रभेदों को कहते हैं:-- संख्योपमादि भेदाभ्यां द्रव्यमानं द्विधास्मृतम् । संख्यामानं त्रिधाख्यातं. उपमामानमष्टधा ॥३२॥ तत्संख्यातमसंख्यातमनन्तं च भदेत विधा । जघन्यमध्यमोत्कृष्ट भेदैः संख्यातक विधा ॥३३॥ परीतासंख्यनामाद्यं युक्तासंख्यं द्वितीयकम् । असंख्यासंख्यक चेत्यसंख्यात विविध मतम् ॥३४॥ जधन्यमध्यमोत्कृष्टप्रकारेस्तत्पृथग्विधम् । प्रत्येक निविघं स्यावसंख्यातं नषधेत्यपि ॥३५॥ परीतानन्तनामाथ युक्तानन्ताह्वयं ततः । अनन्तानन्तसंज्ञं चेत्यनन्तं त्रिविधं भवेत् ।।३६॥ प्रत्येकं त्रिविध तच्च जघन्य मध्यमाभिधम् । उत्कृष्टमित्यनंतस्य स्पुर्भवा नपिण्डिताः ।।३।। एते पिण्डोकता सर्वे भेदाः स्परेकविंशतिः । संख्यासंख्यात्मकानन्तानां नामभिः पृथग्विधः ॥३८॥ अर्थ:-संख्या और उपमा के भेद से द्रव्यमान दो प्रकार का कहा गया है । इसमें संख्या मान तीन प्रकार का और उसमा मान प्रष्ट प्रकार का है ।।३।। संख्यात, असंख्यात और अनन्त के भेद से संख्या मान तीन प्रकार का है । तया संख्यात भी जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट के भेद से तीन प्रकार का है ।।३३।। परीतासंख्यात, युक्ता संख्याल और असंख्यातासंख्यात के भेद से असंख्यात तीन प्रकार का है ।।३४॥ इनमें जघन्य परीतासंख्यात, मध्यम परीतासंख्यात, उत्कृष्ट परीतासंख्यात, जघन्ययुक्तासंख्यात, मध्यम युक्तासंख्यात, उत्कृष्ट युक्तासंख्यात, जघन्य असंख्यातासंख्यात, मध्यम असंख्याता. संख्यात और उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यात के भेद से असंख्यात नौ प्रकार का है ॥३५।। परीतानन्त, युक्तानन्त और अनन्तानन्त के भेद से अनन्त तीन प्रकार का है ॥३६।। तथा इन तीनों के भी भिन्न भिन्न जघन्य मध्यम और उत्कृष्ट के भेद से तीन तीन प्रकार होते हैं. इन सबको मिला देने से अनन्तानन्त के भी नो भेद होते हैं ।।३७॥ संख्यात, असंख्यात और अनन्त इन तीनों के पृथक पृथक् सर्व भेदों को जोड़ देने से संख्या प्रमाण के सर्व भेद' (३+६+६)=२१ होते हैं ||३८1।
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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