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________________ ५५४ ] सिद्धांतसार दीपक स्वों के देव अपनी देवांगनाओं के गीत एवं स्वर आदि के सुनने से उत्पन्न होने वाला शब्द प्रयीचार रूप सुख भोगते है ।१९। तथा पानतादि चार कल्पों के देव देवियों के स्मरण मात्र से उत्पन्न होने वाले मनः प्रवीचार रूप सुख का अनुभव करते हैं॥१६६। इसके आगे नववेयकों से सर्वार्थसिद्धि पर्यन्त के सभी देव महमिन्द्र हैं। ये प्रबोचार ( काम वासना ) से रहित, कामदाह से रहित एवं अप्रवीचार जन्य महासुखसमुद्र के मध्य प्रवगाहन करते हैं ॥२०॥ - प्रब वैमामिक देवों के प्रवधिज्ञान का विषय देश एवं विशिमा मि में प. का कथन करते हैं:-- सौधर्मशानकापस्था देवाः पश्यन्ति चावधेः । प्रथमक्षितिपर्यन्तान रुपिद्रव्यांश्चराचरात् ॥२०१॥ सनत्कुमारमाहेन्द्रवासिनोऽवधिना स्वयम् । लोकयन्ति द्वितीया क्ष्मा पर्यन्त वस्तुसञ्चयान ॥२०२॥ ब्रहास्पादिचतुःस्वर्गस्थाः प्रपश्यन्ति निर्जराः। तृतीयभूमिपर्यन्तस्थितद्रव्याणि चावधेः ॥२०३॥ शुक्रादिक चतुःस्वर्गवासिनोऽवधिनेत्रतः। चतुर्थी क्षिति सीमान्ताल्लोकन्ते द्रव्यसन्चयान ॥२०४।। मानतादिचतुःकल्प बासिनः स्वावधेबलात् । पञ्चमीक्ष्मान्तगाम रुपिद्रध्यान पश्यन्ति चाखिलान् ॥२०॥ मषन वेयकस्थाहमिन्द्रा पालोकयन्ति च । पदार्थान् रूपिणः षष्ठीपरान्तस्थान निजावधेः ॥२०६।। नवानुदिशपञ्चानुत्तरमास्यहमिन्द्रकाः। रूपिद्रव्यान प्रपश्यन्सि सप्तमी क्ष्मान्तमञ्जसा ॥२०७॥ लोकनाडीगतान् विश्वान रूपिद्रव्यांश्चराचरान् । लोकन्तेऽवषिनेत्रेण पञ्चानुचरवासिनः ॥२०॥ सौधर्ममुख्य पञ्चानुत्तरवासि सुधाभुजाम् । प्रथमापृथिवीमुख्यलोकनाड्यन्तमध्यगाः ॥२०॥ अवधिज्ञानतुल्यास्तिबिक्रियाद्धरनेकधा । सप्तमी क्षितिपर्यन्तगमनागमन क्षमा ॥२१०।। मतिश्रुतावधिज्ञानानि सदृष्टिदिवौकसाम । सम्यग्मयन्ति रूप्यर्थप्रत्यक्षमायकान्यपि ॥२१॥
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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