SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 577
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पंचदशोऽधिकारः [ ५३१ उपर्युक्त गद्य का अर्थ निम्नाहित तालिका में निहित है । प्राकारों एवं गोपुरों का प्रमाण योजनों और भीलों में दर्शाया गया है। प्राकारों (कोट) का विवरण गोपुर द्वारों का प्रमाणादि ऊंचाई बाहुल्य गाध (नीव) को गहराई सत्सेध व्यास सात स्थान प्रमांक योजनों में मीलों में योजनों में भीलों में योजनों * योजनों में मोलों में पोजनों मोलों में सौधर्मशान * - सा०, मा० ब्रह्म-ब्रह्मो० लालका शुक्र-म. शतार-सह " --- ... मानतादि अब सौधर्मादि बारह स्थानों में गृहों को ऊँचाई, लम्बाई एवं चौड़ाई का प्रतिपावन करते हैं:-- षट्सु युग्मेषु शेषेषु ग्रंधेयकत्रिक त्रिषु । नवानुदिशिपञ्चानुत्तरे पृथग्गृहोदयः॥१२६॥ योजनां शतान्येव षट सतः शतपञ्चकम् । शता) तरणं शेषारणामन्ते पञ्चविंशतिः ॥१३०॥ हयारणामुदयस्यास्यायामोऽस्ति पञ्चमाशकः । विष्कम्भो दशमो भागः सर्वत्र व्यवस्थितिः ॥१३॥ अर्थ:-सौधर्मादि छह युगलों में अवशेष पानतादि स्वर्गों में, अधो, मध्य एवं उपरिम इन नव अनुदिशों में एवं पंचानुत्तरों में अर्थात् (६-५-१+३+१+१-) १२ स्थानों में गृहों की पृथक्
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy