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________________ स्थान संख्या ሂ ६ ८ al & १० ११ पंचदशोऽधिकार ――― उपर्युक्त गद्य का सम्पूर्ण अयं निम्नलिखित तालिका में निहित है: क्रमांक २ ३ ४ ५. १७ ८ £ १४ स्वर्ग पटल श्रानतादि २ १० आरण-अच्युत ११ तीनों अधोवे० 10 १२ तीनों मध्य १३ सौधर्म ऐशान सानत्कुमार माहेन्द्र ब्रह्म ब्रह्मोत्तर लान्तव कापिष्ठ शुक्र महाशुक शतार-सह० १५ " तीनों उपरि, नव अनुदिश पंच अनुत्तर इन्द्रक + संख्यात० वाले प्रकीर्णक = संख्यात कोटि योजन वाले विमानों का कुल प्रमाण ३१+६३९९६९= ६४०००० ५६०००० प्रकीक ७ + २३९९९३-२४०००० १६०००० प्रकीर्णक ४+७६६६६८०००० २+६६६६= १०००० १+७९९९८००० १ + ११६९ = १२०० ३+८५६६ १+४९=५२ ३+३ ३+१५-१८ ३+१४=१७ १ + ० = १ १+०= १ श्रेणीबद्ध + श्रसंख्यात० वाले प्रकीर्णक प्रसंख्यात कोटि योजन बाले विमानों का कुल प्रमाण [ ५१९ ४३७१+२५१५६२९ = २५६०००० (१४५७+ २२३८५४३ ) = २२४०००० (५८८ + ६५६४१२ ) = १६०००० ( १९६+६३६००४) = ६४०००० (३६० + ३१९६४० ) = ३२०००० (१५६ + १६८४४) = ४०००० (७२ + ३१९२८) = ३२००० {६८+४७३२) =४८०० ( १८० + १७२ ) = ३५२ (१४४ + ६४) = २०८ (805+0)=?05 ( ७२+१७) = ८९ (३६ + ३८) =७४ (४+४) == (४+ ०) = ४
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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