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________________ पंचदशोऽधिकारः [ ५१७ पब इन्द्रक श्रेणीबद्ध और प्रकीर्णक विमानों के प्रमाण का कथन करते हैं: संख्ययोजनविस्तारा इन्द्रकाः सकला मताः । भी पीवता संस्मातकोतीयोजन विस्तराः ॥६७।। केचित्प्रकीर्णकासंख्य कोटोयोजन विस्तृताः । केचिदसंख्यकोटीन योजनविस्तरान्विताः ॥६॥ अच्युतान्तस्थ सर्वेषां विमानानां हि पञ्चमः । भागः संख्येय कोटिप्रमाणयोजनविस्तृतः ।।६६॥ ततः शेषा हि चत्वारो भागाः सर्वेषु सन्ति च । विमानानामसंख्यातकोटीयोजनविस्तराः ॥७॥ संख्यातयोजनध्यासा अधोग वेयक त्रये । सन्तोन्द्रक विमानास्त्रयः श्रेणीमध्यभागगाः ॥७१॥ अष्टादशविमानाः स्युर्मध्यनवेयक त्रिके । संख्ययोजनविष्कम्भाः प्रकीर्णकेन्द्रकोभयोः ॥७२॥ संख्येययोजनध्यासाः ऊर्ध्वग्र वेषक त्रये । स्युः सप्तदशसंख्याना विमानारत्नशालिनः ॥७३।। नयातुविशसंझे च पञ्चानुत्तरनामनि ।। संख्ययोजनविस्तार एकक इन्द्रकः पृथक् ।।७४॥ एतेभ्यो ये परे सन्ति श्रेणीबद्ध प्रकीर्णकाः । ते सर्वे स्युरसंख्यातकोटीयोजन विस्तृताः ।।७।। अर्थः-समस्त इन्द्रक विमान संख्यात योजन बिस्तार वाले और श्रेणीबद्ध विमान असंख्यात योजन कोटि विस्तार वाले हैं ।।६७।। प्रकीर्णक विमानों में से कुछ प्रकीर्णक संख्यात करोड़ योजन विस्तार बाले और कुछ प्रकीर्णक असंख्यात कोटि योजन विस्तार वाले हैं ॥६॥ सौधर्म स्वर्ग से अच्युत स्वर्ग पर्यन्त के कल्पों में अपनी अपनी विमान राशि के पांचवें भाग प्रमाण विमान संख्यात करोड़ योजन विस्तार वाले हैं, इनसे अवशेष विमान असंख्यात करोड़ योजन विस्तार वाले हैं। अथवा अपनी अपनी राशि के वे भाग प्रमाण विमान प्रसंख्यात करोड़ योजन विस्तार वाले हैं। जैसे—सौधर्म कल्प की कुल विमान राशि ३२०००००-६४०००० संख्यात योजन व्यास बाले
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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