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________________ ४८२ ] विदेह पश्चिम सिद्धान्तसार दीपक विधिसागर जी पूर्व विदेह ( चित्रण में जिस प्रकार जम्बूद्वीप लवरण समुद्र और धातकी खण्ड के चन्द्र सूर्य दर्शाये गये हैं उसी प्रकार कालोदक एवं पुष्करार्ध क्षेत्र में भी जानना चाहिए । अब एक चन्द्र के परिवार का निरूपण करते हैं : चन्द्र ेन्द्रस्य भवेत्सूर्यः प्रतीन्द्रो मिलिता ग्रहाः । श्रष्टाशीतिश्च नक्षत्राण्यष्टाविंशतिरेव व ॥ ५३ ॥ षट्षष्टिश्च सहस्राणि तथा नवशतान्यपि । पञ्चसप्ततिसंख्यानाः कोटीकोटयो हि तारकाः ।। ५४ ।। अर्थः- चन्द्रमा इन्द्र है | इसके परिवार में सूर्य प्रतीन्द्र ( एक ), ग्रह ८८ श्रभिजित् सहित अश्विनी आदि नक्षत्र २८ एवं छयासठ हजार नौ सौ पिचहत्तर कोड़ाकोड़ी अर्थात् ६६९७५०००००००००००००० सारागरण हैं ।।५३-५४।। די मद जम्बूद्वीपस्थ भरतादि क्षेत्रों और कुलाचलों को ताराधों का विभाजन दर्शाते हैं :
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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