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________________ ४७.1 सिमान्तसार दीपक नित्योपावकदेवानामखण्डायुजिनमतम् । दशवर्षसहस्राणि दिग्यासिनां च जोषितम् ॥११०॥ विंशस्यब्दसहलाण्यन्तरवासिसुधाभुजाम् । त्रिंशद्वर्षसहस्राणि कूष्माण्डानां च जीवितम् ॥१११॥ . . परवारिंशसहस्राब्धमुत्पन्नात्यामृताशिनाम् । परमायुभवेत् पञ्चाशत्सहस्राब्दमानकम् ।।११२।। अनुत्पन्नात्मना षष्टिसहस्रवर्षजीवितम् । प्रमाणकात्मनां सप्ततिसहलाब्दसंस्थितिः ॥११॥ गन्धाख्यानां तथाशीतिसहस्रवर्षमीवितम् । महागन्धास्यवेपानां धृते चायुमंतं जिनः ।।११।। : : वर्षाणां चतुरपाशीतिसहस्रप्रमाणकम् । भुजगानां भवेदाय पन्य कमाणकः ॥१॥ प्रीतिङ्करात्मनां पल्यस्य चतुर्थाशजीवितम् । प्राकाशोत्पन्नदेवानामायुः पल्यार्थसम्मितम् ॥११६।। अर्थ:-जिनेन्द्र भगवान के द्वारा नित्योत्पादक देवों की प्रखण्ड प्रायु दश हजार वर्ष दिग्वासियों । की २० हजार वर्ष, अन्तरवासी देवों की ३० हजार वर्ष, कूष्माण्ड देवों की ४० हजार वर्ष, उत्पन्न देवों की ५० हजार वर्ष, अनुत्पन्न देवों की ६० हजार वर्ष, प्रमाणक देवों की ७० हजार वर्ष, गन्ध देवों की ८० हजार वर्ष और महागन्ध देवों को उत्कृष्ट प्रायु ८४ हजार वर्ष कही गई है, तथा जिनागम में भुजग देवों की आयु पल्य का ८ वी भाग, प्रीतिङ्कर देवों की पल्य का चौथाई भाग और आकाशोत्पन्न . देवों की आयु अर्घ पल्य प्रमाण कही गई है ।।१२०-११६॥ - अब ज्यन्तर देवों को जघन्योत्कृष्ट प्राय, अवगाहना, प्राहार, श्वासोच्छवास और .. अवधिज्ञान के विषय का प्रमाण कहते हैं : उत्कृष्टं व्यन्तराणां स्यादायुः पस्योपमं क्रमात् । यशवर्षसहस्राणि सर्वजघन्यजीवितम् ॥११७॥ बशचापोणतः कायः समस्त व्यन्तरात्मनाम् । मानसाहार एषास्ति सापञ्चदिनं गतः ॥११॥
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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