________________
त्रयोदशोऽधिकार।
[४५७ अर्थ:-किन्नर देवों के शरीर का वर्ण प्रियंगुफल सदृश नील पणे, किम्पुरुषों का धवल वर्ण, महोरगों का कृष्ण वर्ण, गन्धर्व, यक्ष और राक्षसों का स्वर्ण सदृश वर्ण, भूतों का कृष्ण वर्ण और पिशाच जाति के देवों का पंक' सदृश वर्ण होता है। अब इन पाठों देवों के भिन्न भिन्न भेद कहते हैं ॥५-६|| अब व्यन्तर देवों के मुख्य पाठ कुलों के प्रवान्तर भेव कहते हैं :--
किन्नरा दशमेवाह किम्पुरुषा द्विपश्वधा । महोरंगाश्च तावन्तो गन्धर्वाः स्युर्दशारमकाः ॥७॥ प्रोक्ता द्वावशषा यक्षाः सप्तप्रकारराक्षसाः।..
भूताः सप्तविधााच द्विसप्तमेवाः पिशाचकाः ।।८।। अर्थः-किलर देवों के दश भेद, किम्पुरुषों के दश भेद, महोरगों के दश भेद गन्धर्वो के दश भेद, यक्षों के बारह, राक्षसों के सात, भूतों के सात और पिशाचों के चौदह भेद होते हैं ।।७-८।। अब किन्नर और किम्पुरुष कुलों के प्रवान्तर भेदों के नाम कहते हैं :
पादिमाः किन्नरादेवाः किम्पुरुषास्ततोऽमराः। हृदयङ्गमगीर्वाणाः स्वरूपाः पालकामराः ॥६॥ किन्नर किन्नराः किन्नरनिन्याभिनिखराः । ततः किन्नरमान्याः किन्नरादिरम्यसंज्ञकाः ॥१०॥ किन्नरोत्तमसंज्ञाश्चैते किन्नरा द्विपश्वधाः । प्राद्याः सत्पुरुषा देवा महापुरुषसंतकाः ॥११॥ देवाः पुरुषनामानः पुरुषोत्तमनिर्जराः । पुरुषप्रभगीर्वाणास्तथासिपुरुषामराः ॥१२॥ घायवो मरुदेवाख्या मरुत्प्रभाभिधानकाः।
यशोमन्त इमे किम्पुरुषा बशविधा मताः ॥१३॥ अर्थ:-प्रथम किन्नर नाम के व्यन्तर देवों में किन्नर और किम्पुरुष ये दो इन्द्र, हृदयङ्गम मौर स्वरूप ये प्रतीन्द्र हैं, शेष पालक किन्नकिन्नर, किन्नरनिन्ध, किन्नरमान्य, किन्नररम्य और किन्नरोत्तम ये दश प्रकार के किन्नर देव हैं । सत्पुरुष ( इन्द्र), महापुरुष (इन्द्र), पुरुषनाम (प्रतीन्द्र), पुरुषोत्तम (प्रतीन्द्र), पुरुषप्रभ, अतिपुरुष, मस्त, मरुदेव, मरुस्प्रभ और यशोमन्त नाम के दश प्रकार के किम्पुरुष अन्तर देव होते हैं ॥४-१३॥