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________________ द्वादशोऽधिकारः प्रीता वल्लभिकाबेग्यः सहस्रदशसम्मिताः । विश्यरूपा महादेव्यः पञ्चशर्मादिखानयः ॥११५॥ सुपर्णानां चतुश्चत्वारिंशत्सहस्रदेवताः । देयो चलभिका रम्याश्चतुः सहस्र सम्मिताः ॥ ११६ ॥ महाग्यो कृपाविरसखानयः । शेष द्वीपादिसप्तानामिन्द्रादीनां सुराङ्गनाः ॥११७॥ स्युर्द्वात्रिशत्सहस्राणि प्रत्येकं चारुमूर्तयः । तथा बल्लभका देव्यो द्विसहस्रप्रमाः प्रियाः ।। ११८ ।। रम्याः पञ्चमहादेव्यो मनोनयनवल्लभाः । असुरादि त्रयाणामेकैका देवी निजेच्छ्या ॥ ११६ ॥ विक्रियद्ध घा सहस्राष्टदिव्यरूपाणि योषिताम् । विकरोति विनामूलशरीरं च पृथक् पृथक् ।।१२० ॥ शेषद्वीपादि सप्तानामेकैका देवता क्षणात् । प्रत्येक पट्सहस्राणि स्त्रीरूपाणि सृजेत्स्वयम् ॥१२१॥ [ ४४७ अर्थ :- असुरकुमारों के ५६००० देवांगनाएँ. १६००० वल्लभकाएं और पांचों इन्द्रियों को सुख प्रदान करने वालीं पांच महादेवियां होतीं हैं। नागकुमारों के ५०००० देवांगनाएँ, १०००० वल्ल भिकाएँ और पंचेन्द्रियों के सुख की खान स्वरूप, दिव्यरूप धारण करने वालीं पांच महादेवियाँ हैं ।।११३-११५।। सुपर्णकुमार देवों के ४०००० देवांगनाएँ प्रत्यन्त रम्य ४००० वल्लभकाएं और रूप एवं रस की खान स्वरूप पाँच महादेवियाँ हैं । द्वीपकुमार श्रादि शेष सात इन्द्रों में से प्रत्येक इन्द्र की देवियां ३२०००, सुन्दर प्रकृति से युक्त वल्ल भिकाएँ २००० और मन एवं नेत्रों को प्रिय लगने वाली प्रत्यन्त रम्य महादेवियाँ पाँच होती हैं । असुरकुमार, नागकुमार और सुपकुमार इन्द्रों की एक एक देवी अपनी इच्छा से मूल शरीर को छोड़ कर पृथक् पृथक् दिव्य रूप को धारण करने वाली प्राठ-प्राठ हजार देवांगना रूप विक्रिया करती हैं। शेष द्वीपकुमार आदि सात इन्द्रों की एक एक देवी अपनी इच्छा से मूल शरीर को छोड़कर पृथक् पृथक् छह छह हजार विक्रिया रूप का सृजन करतों हैं ॥। ११६-१२१ ॥ अब चमरेन्द्र आदि इन्द्रों के पारिषद, अंगरक्षक और अनीक श्रादि देवांगनाओं का प्रमाण कहते हैं : चमरेन्द्रस्य चान्तः परिषत्स्थित सुधाभुजः । एकैकस्य पृथक् सन्ति देव्यः सार्धंशतद्वयम् ॥ १२२ ॥
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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