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________________ द्वादशोऽधिकारः मङ्गलाचरण :-- सद्वासप्ततिलक्षांश्च सप्तकोटिजिनालयान् । भावनामरवन्धावान् वन्दे तत्प्रतिमाः स्तुवे ॥१॥ अर्थ:-भवनदासी देवों के द्वारा वन्दनीय और पूजनीय सात करोड़ बहत्तर लाख जिनालयों को मैं वन्दना करता है, तथा उनमें स्थित प्रतिमानों को स्तुति करता हूँ ॥१॥ प्रतिज्ञा सूत्र कहते हैं : अथ वक्ष्ये समासेन भावनादिपुरस्सरान् । देवांश्चतुर्विधान नृणां सद्धर्मफलव्यक्तये ॥२॥ अर्थः—प्राप्त किया है समीचीन धर्म का फल जिन्होंने ऐसे मनुष्यों के लिये भवनवासी आदि हैं, आगे जिनके ऐसे चार प्रकार के देवों का संक्षेप से वर्णन करूंगा ॥२॥ अब देवों के मूल चार भेद और उन चारों के प्रवस्थान का स्थान कहते हैं :-- भावना व्यन्तरा ज्योतिरुकाः कल्पवासिनोऽमराः । इमे चतुविधाः प्रोक्ताः प्राप्तधर्मफला जिनैः ॥३॥ भावनव्यन्तराणां चाधोलोके भवनानि । मध्यलोके गृहा: सन्ति यावत्सुदर्शनानकम् ।।४।। वशोनाष्टशतान्यूध्वं गत्वा चित्रामहीतलात् । योजनानां विमानानि ज्योतिष्काणां भवन्ति च ॥५॥ चित्राभूमितलाक्षेत्रं सौधर्मस्वसंश्रितम् । तदाश्रयान्मतास्तेऽपि स्वर्गलोकाश्रिताः सुराः ॥६।।
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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