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________________ ४१४ ] सिद्धांतसार दीपक मत्स्यानां परमायुः स्यात्पूर्वकोटिप्रमाणकम् । सरीसृपाङ्गिनामायुर्नवपूर्वाङ्गसम्मितम् ॥१३६॥ द्वासप्ततिसहस्राब्दप्रममायुश्चपक्षिणाम् । उरगाणां द्विचत्वारिंशत्सहस्राब्दजीवितम् ॥१४०।। एकाक्षद्वित्रिर्याक्षाणां जघन्यायुरिष्यते । कृताष्टादशभागानामुच्छ वासस्येक भागकः ॥१४१॥ संज्ञिनामल्पमृत्यादियुतापुण्यनृणां भवेत् । अन्तर्मुहूर्तमायुष्यं सर्वजघन्यमत्र च ।।१४२॥ अर्थः-मदु पृथ्वीकायिक जीवों को उत्कृष्ट प्राय बारह हजार वर्ष की, खर पृथ्वोकायिक जीवों की बाईस हजार वर्ष की, जलकायिक जीवों की उत्कृष्टायु सात हजार वर्ष की, अग्निकायिक जीवों की तीन दिन को और घायुकायिक जीवों की तीन हजार वर्ष की उत्कृष्ट प्रायु है ।।१३४-१३६।। वनस्पतिकायिक जीवों की उत्कृष्ट प्रायु दश हजार वर्ष की, हीन्द्रिय जीवों की बारह वर्ष, त्रेन्द्रिय जीवों ! की उन्चास (४६) दिन को और चतुरिन्द्रिय जीवों को उत्कृष्ट प्रायु छह मास प्रमाण होती है ।।१३७१३८॥ महामत्स्यों को उत्कृष्ट प्रायु एक कोटि पूर्व की, सरीसृप जीवों को नवपूर्वांग अर्थात् सात करोड़ ५६ लाख वर्षों को, पक्षियों को बहत्तर हजार वर्षों को और सर्पो को व्यालीस हजार वर्षों की उत्कृष्ट प्रायु होतो है ।।१३९-१४०।। एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, श्रीन्द्रिय तथा चतुरिन्द्रिय जीवों की जघन्य प्राय स्वांस के अठारह भागों में से एक भाग प्रमारण होती है ॥१४१।। गर्भज संज्ञी जीवों को अल्पायु और पुन्य हीन गर्भज मनुष्यों की सर्व जघन्य आयु मात्र अन्तर्मुहूर्त प्रमाण को होतो है ।। १४२।। नोट :-लब्ध्यपर्याप्तक, संज्ञो, असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों की तथा लध्यपर्याप्तक मनुष्यों की जघन्यायु श्वास के अठारहवें भाग होती है। अब स्पर्शन प्रावि पांचों इन्द्रियों को प्राकृति दर्शाते हैं :-- श्रोत्रेन्द्रियस्य संस्थानं यवनालसभाकृतिः । चक्षरिन्द्रियसंस्थानं वृत्तं मसूरिकाप्समम ॥१४३॥ संस्थानं घ्राणखस्यास्त्यतिमुक्तपुष्पसन्निभम् । जिहन्द्रियस्य संस्थानमर्धचन्द्रसमानकम् ॥१४४।। स्पर्शेन्द्रियसंस्थानमनेकाकारमस्ति च । समादिचतुरस्रादि भेवभिन्नं च षड्विधम ||१४५।।
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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