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________________ ४१२ ] सिद्धान्तसार दोपक चतुर्थमर्धनाराचं कोलिकाख्यं च पश्चमम् । असम्प्राप्तामृपाद्याविक निसंहनानि च ॥१२२।। इमानि स्युः स्फुटं कर्मभूमिजद्रव्ययोषिताम् । भोगभूमिजनुस्त्रीणामाद्यं संहननं परम् ॥१२३।। मिथ्यात्वाधप्रमत्तान्तगुणस्थानेषु सप्तसु । प्रवर्तमानजोयानां सन्ति संहननानि षट् ॥१२४॥ अपूर्वकरणाभिख्येऽनिवृत्तिकरणाहये । सूक्ष्मादिसाम्परायाख्ये हा पशान्तकषायके ॥१२५।। श्रेण्यामुपशमाख्यायां तिष्ठतां योगिनां पृथक् । नोरिण संहननानि स्रादिमानि इटानि च ॥१२६।। अपुर्वकरणाख्ये चारितिकरणाभिने । सूक्ष्मादिसाम्परायाख्ये क्षीण कषायनामनि ।।१२७।। सयोगे च गुणस्थानेत्राद्य संहननं भवेत । केवलं क्षपकश्रेण्यारोहणकृतयोगिनाम् ॥१२॥ अयोगिजिननाथानां देवानां नारकात्मनाम् । पाहारफमहर्षीणामेकाक्षाणां धषि च ॥१२६।। यानि कार्मणकायानि बजता परजन्मनि । तेषां सर्वशरीराणां नास्ति संहननं क्वचित् ॥१३०॥ अर्थ:--म्लेच्छ मनुष्यों, विद्याधरों, मनुस्यों, संज्ञो पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों और कर्म भूमिज तिर्य चों के छहों संहनन होते हैं ।।११।। असंज्ञी तिर्यों के, विकलेन्द्रिय जोवों के और लमध्यपतिक जीवों के अन्तिम असम्प्राप्त सृपाटिका नाम का छटवाँ अशुभ संहनन होता है ॥ ११६ ॥ वज्रमय वर्षभ, कोलं एवं अस्थि से युक्त और वचमाय बेपन से देष्ठित पहिला वर्षभनाराच संहनन, वचमय नाराच (कोलों) व अस्थियों से युक्त दूसरा वचनाराच संहनन है और तीसरा नाराच सहनन है । ये तीनों संहनन परिहार विशुद्धि संयम से युक्त मुनिराजों के होते हैं ॥१२०-१२१।। चौथा अर्धनाराच, पांचवां कोलक और छठवां असम्प्रामसूपाटि का ये तीनों संहनन वार्मभूमिज द्रव्य वेदी स्त्रियों के होते हैं । भोगभूमिज मनुष्यों और स्त्रियों के आदि का एक उत्कृष्ट संहनन होता है ।।१२२-१२३॥ मिथ्यात्व गुणस्थान से लेकर सप्तम गुणस्थान पर्यन्त सात गुणस्थानों में प्रवर्तमान जीवों के छहों संहनन होते हैं ।।१२४॥ उपशम श्रेणी गत अपूर्वकरण, अनिवृत्तिकरण, सूक्ष्मसांपराय और उपनान्तकपाय गुरणस्थानों में प्रवर्तमान मुनिराजों
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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