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________________ ३६४ ] सिद्धान्तसार दोपक अर्थ:-विदेह के प्रायाम में से सीता वा सोलोदा नदी का व्यास घटा कर शेष का प्राधा करने पर वक्षार पर्वतों का, देशों का और दोनों देवारण्य वनों का आयाम प्रान हो जाता है । यह पायाम वृद्धि और ह्रास के कारण अनेक प्रकार हो जाता है ऐसा धुत में कहा गया है। इस आयाम में से कुण्ड का व्यास (५०० यो०) कम कर देने पर विभंगा नदी का आयाम हो जाता है ।।२३५-२३६॥ अब पुष्कराधस्थ समस्त विजयाओं के व्यास प्रादि का प्रमाण एवं विदेहस्थ क्षेत्रों के छह खण्ड होने का कारण कहते हैं :-- योजन द्विशतव्यासाः सर्वे रूप्याचला मताः । देशव्याससमायामाः पूर्वोन्नतिसमोन्नताः ॥२४०।। गङ्गासिन्धुनदीभ्यां च द्वाभ्यां रूप्याद्रिणारिखलाः । षट्खण्डीभागमापन्ना विदेहे विषयाः स्मृताः ।।२४१॥ अर्थ:-पुरकरार्धस्थ समस्त विजया पर्वतों का आयाम ( लम्बाई ) अपने अपने देश को चौड़ाई के प्रमाण है । अर्थात् जितमै योजन देश की चौड़ाई है, उतने ही योजन विजया की लम्बाई है। रूपाचलों का व्यास २०० योजन और ऊँचाई पूर्व कथिन ( २५ योजन ) प्रमाण है ॥२४०।। विदेहस्थ समस्त देशों के गंगा-सिन्धु इन दो दो नदियों और एक एक रूपाचल ( विजयाध ) पर्वतों से छह-छह खण्ड हुए हैं ॥२४१॥ अब गंगादि क्षुल्लक नदियों के और कुण्डों के व्यास प्रादि का प्रमाण कहते हैं :-- विभङ्गोत्पत्ति कुण्डानि सर्वाणि विस्तृतानि च । द्वारतोरणयुक्तानि स्युः पञ्चशतयोजनः ॥२४२।। गंगादिक्षुल्लकाभ्यः प्राग् नदोभ्यः सरितोऽत्र च । गङ्गाद्या द्विगुणव्यासाः पूर्वावगाहसम्मिताः ॥२४॥ गंगाद्युत्पत्ति कुण्डानि साद्विशतयोजनः । विस्तृतानि च पूर्वोक्तागाहवेदियुतान्यपि ॥२४४।। अर्थ:-विभंगा नदियों को जिनसे उत्पत्ति होती है ऐसे तोरण द्वार प्रादि से अलंकृत समस्त कुण्डों का विस्तार ५०० योजन प्रमाण है ।।२४२|| घातको खण्डस्य विदेह में गंगा आदि छोटी नदियों का जो न्यास कहा है उससे पुष्करराधस्थ बिदेह को गंगादि क्षुल्लक नदियों का व्यास दूना और अवगाह नम्वूहोपस्थ विदेह की गंगादि नदियों के अन माह प्रमाण है ।।२४३॥ गंगादि क्षुल्लक नदियों की जिनसे उत्पत्ति होती है ऐसे बेदी एवं तोरण आदि से युक्त समस्त कुण्डों का व्यास २५० योजन और अबगाह पूर्वोक्त प्रमाण ( ) है ।।२.४४11
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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