SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 371
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दशमtofuकार: इसका चित्रण निम्न प्रकार है। चा -x - [ ३२५ अब पातालों के अभ्यन्तरवर्ती जल और बायु के प्रवर्तन का क्रम तथा जल में होने वाली हानि वृद्धि का कारण कहते हैं :-- पातालानां समस्तानामवगाहे निरूपिताः । पृथक् यस्त्रयो भागाः समाना आगमे जिनंः ||३४|| अधोभागेषु सर्वेषां केवलं वातसञ्चयः । मध्यतृतीयभागे स्तो जलवातौ स्वभावतः ||३५| स्तृतीयांशेषु तिष्ठन्ति जलराशयः । arratri वृद्धिह्रासौ स्तो वाताधीनौ न संशयः ॥ ३६ ॥ यदाधस्तान् महान् वायुरूर्ध्वमायाति तेन च । atari हि तदा वृद्धिर्जघन्यमध्यमोत्तमा ||३७॥ यदा पातालमध्येषु प्रवेशं कुरुते मरुत् । हातिस्तदेव वीचीनां सर्वत्र लवणाम्बुधौ ||३८|| अर्थः- :- श्रागम में जिनेन्द्र भगवान के द्वारा उन समस्त पातालों का जो पृथक् पृथक् अवगाह निरूपण किया गया है, उसके समान रूप से तीन तीन भाग करने पर उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य तीनों
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy