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________________ ३१४ ] सिद्धान्तसार दोपक अन्तिमः कोटिपूर्वायुर्भविता तीर्थकारकः । शतपञ्चधनुस्तुङ्गः सन्मार्गदोपको महान् ।।३३६ ।। शेषाणां तीर्थकतोणा भविष्याणां जिनागमे । प्रायुरुत्सेधकालाधा ज्ञेयाश्च भूतयेऽखिलाः ॥३४०।। अर्थ:--द्वितोय काल के बाद उत्सपिरणो का दुःखमासुखमा नाम का तृतीय काल पायगा, जो अवसर्पिणी के चतुर्थकाल सदृश होगा, किन्तु इसमें प्रायु, बल एवं बुद्धि प्रादि में क्रमशः वृद्धि होती जायगी ॥३३०॥ इस तृतीय काल में नष्ट हुए धर्म का उद्धार करने में तत्पर प्रागे कहे जाने वाले चौबीस तीर्थकर क्रमशः होंगे ॥३६॥ प्रथग डीकर (मिम गाजाका जी ) १ पद्म, २ सुरदेव, ३ सुपाश्च, ४ स्वयम्प्रभ, ५ सर्वात्मभूत, ६ देवपुत्र, ७ कुलपुत्र, ८ उदङ्क, १ प्रोष्ठिल, १० जयकीर्ति, ११ मुनिसुव्रत, १२ अरनाथ, १३ अपावक, १४ निष्कषाय, १५ विपुल, १६ ( कृष्णनारायण का जीव } निर्मद, १७ चित्रगुप्त, १८ समाधिगुप्त, १६ स्वयम्भू, २० अनिवति, २१ जय, २२ विमल, २३ देवपाल और २४ ( सात्यिको तनुज अन्तिम रुद्र का जीव ) अन्तिम तीर्थकर अनन्तवीर्य होगा। ये चौबीस जिनेन्द्र, देवेन्द्र, धरणेन्द्र एवं नरेन्द्रों के द्वारा वन्दित और पूजित हैं, स्वर्ग एवं मोक्ष के मार्ग को दर्शाने वाले हैं, घमं तीर्थ के प्रणेता एवं विश्व का हित करने वाले हैं. ऐसा जानना चाहिए ।। ३३२-३३६॥ इन यौबीस तीर्थंकरों के मध्य, तीर्थ का प्रवर्तन करने वाले जो प्रथम तीर्थंकर होंगे वे शुद्धसम्यक्त्व के माहात्म्य से श्रेणिक राजा का जीव हो होगा। इनकी प्रायु ११६ वर्ष प्रमाण और शरीर की ऊँचाई सात हाथ प्रमाण होगी। ये अपनी दिव्यध्वनि के द्वारा मनुष्यों को स्वर्ग और मोक्ष का मार्ग दर्शायेंगे ||३३७-३३८॥ सात्यि कीतनुज अन्तिम रुद्र का जीव अनन्तवीर्य नाम के अन्तिम तीर्थंकर होंगे। सन्मार्ग दर्शाने के लिये दीपक सदृश इन महान तीर्थंकर की आयु एक पूर्व कोटि प्रमाण और शरीर का उत्सेध ५०० धनुष प्रमाण होगा। भविष्य में होने वाले अवशेष बाईरा तीर्थकरों की प्रायु, उत्सेध एवं काल आदि का समस्त वर्णन जिनागम से जान लेना चाहिए ।।३३६-३४०।। अब आगामी द्वादश चक्रवतियों के नाम कहते हैं :--- भरतो दीर्घदन्ताख्यो जयदत्ताभिधानकः । गूढदन्तायः श्रीषेणाख्यः श्रीभूतिसंज्ञकः ।।३४१।। श्रीकीर्तिश्च ततः पनो महापद्माभिधानकः । चित्रवाहननामा विमलवाहननामकः ।।३४२॥ अरिष्टसेननामामी भाविचक्रधरा मताः । द्वादशाद्भुत पुण्यात्या नृदेव खचराचिताः ॥३४३॥
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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