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________________ नवमोऽधिकारः [ ३०६ मुनिराज के शिष्य वीराङ्गद नाम के अन्तिम मुनिराज, सर्व श्री प्रायिका, अग्निल नाम का श्रावक और उसको प्रिया पंचसेना नाम की श्राविका काल दोष से ये चार ही धर्मात्मा जोव अबस्थित रहेंगे ॥२६३-२६४|| पाप बुद्धि को धारण करने वाला वह जलमत्थन कल्की पापोदय से पूर्व कल्कियों के सद्दश वीराङ्गद मुनिराज के पाणिपात्र से प्रथम नास का हरण कर घोर उपसर्ग करेगा । तब उस उपसर्ग के प्राप्त होते ही वे चारों धर्मात्मा जीव चारों प्रकार के प्राहार का त्याग कर सुख प्राति के लिए उत्तम मंन्यास ग्रहण कर लेगे ॥२६५-२९६।। पंचम ( दुःग्यमा ) काल के अन्त में तीन वर्ष साढ़े आठ मास अवशेष रहने पर कातिक बदो अमावस्या को प्रातः काल के शुभ उदय में तीन दिनों में हो वे चारों धर्मात्मा जीव समाधिपूर्वक प्राणों को छोड़कर सुख के सागर स्वरूप सौधर्मवाल्प में चले जावेंगे और वहाँ धर्म में तत्पर रहते हुए महा सुखों को भोगेंगे ।।२६७-२६६।। स्वर्ग में वे मुनिराज खण्ड रहित एक सागर की और शेष तीनों जीव कुछ अधिक एक पल्य की आयु प्राप्त करेंगे ।।३००।। पंचम काल के उसी अन्तिम लिन पात: काना नुसती वा पण मुनि रग भावक धर्म का नाश होगा, मध्याह्न काल में राजा का और सन्ध्याकाल में अग्नि का नाश हो जायगा ।।३०१-३०२॥ अब अतिदुखमाकाल का दिग्दर्शन कराते हैं :---- धर्मशर्मातिगः पञ्चमकालस्थितिसंख्यकः । विश्वानिष्टाफरीभूतः पापिसत्त्वकुलालयः ।।३०३॥ अस्यादौ धूम्रवर्णाङ्गा नरा हस्तव्योन्नताः । शाखामृगोपमानग्ना वर्षविंशतिजीविनः ॥३०४॥ मांसाधाहरिणोऽनेकवाराशिनो दिनं प्रति । बिलादिवासिनो दुष्टा प्रायाता दुर्गतिद्वयात् ।।३०५॥ मात्रादिकामसेवान्धास्तिर्यग-नरकगामिनः । भविष्यन्ति दुराचाराः पापिनो दुःखभोगिनः ।।३०६॥ तस्मिन् काले शुभातीते मेघास्तुच्छजलप्रवाः । स्वादुवृक्षोज्झितापृथ्वी निराश्रया नराः स्त्रियः ।।३०७॥ कालस्यान्ते करकोच्चदेहा नराः कुरूपिणः । उत्कृष्टषोडशादायुष्काः शीतोष्णादिपीडिताः ॥३०८।। प्रान्ते तस्मेव कालस्य कियद्दिनावशेषतः । स्फुटिष्यति मही सर्वा निःशेषं वारिशोक्ष्यति ॥३०॥
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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