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________________ २६४ ] सिद्धान्तसार दीपक प्रब इसी प्रमाण को पुनः कहते हैं :-- सर्वजम्बूद्वीपस्य भरतादिसप्तक्षेत्रेषु सर्वाः मूलपरिवारनद्यः एकत्रीकृताः सप्तदशलक्ष-द्विनवतिसहस्रनवतिप्रमा सातव्याः।। अर्थ:-जम्बूद्वीपस्थ भरतादि सात क्षेत्रों में मूल और परिवार नदियों का सर्व योग १७६२०६० प्रमाण जानना चाहिये । अब कुण्डों का प्रमाण एवं शेष द्रोपों के भद्रशाल प्रावि का प्रमाण कहते हैं :-- गङ्गादिपातदेशेषु कुण्डान्येव चतुर्दश । विभंगाक्षुल्लकानिम्नगाश्च षट्सप्ततिः स्फुटम् ॥१५॥ भवशालसरिजम्बूवृक्षादयोऽखिला अमी। द्विगुणा धासकोखण्डे पुष्कराधैं भवन्ति च ॥१६॥ अर्थ:- जम्बुद्वीप में गंगादि चौदह महानदियों के पतन स्वरूप चौदह कुण्ड हैं, और बारह विभङ्गा एवं ६४ गंगादि छोटी नदियों के निकलने के (६४+१२) छिहत्तर (७६) कुण्ड हैं। इस प्रकार कुल १. कुण्ड हैं ॥१८८।। जम्बूद्वीप में भद्रशाल आदि वन, जम्बू प्रादि वृक्ष एवं नदियों आदि का जोजो प्रमाण कहा है, धातको खण्ड और पुष्करा द्वीप में वह सब प्रमाण दूना-दुना जानना चाहिये ।।१८।। अब प्राचार्य विदेहक्षेत्र के प्रति प्राशीर्वचन कहते हैं :-- पत्रोच्चः पदसिद्धये सुकृतिनोजन्माश्रयन्तेऽमरा, यस्मान्मुक्तिपदं प्रयास्तिसपसा केचिच्चनाकवतः। तीर्थेशा गणनायकाश्च गणिनः श्रीपाठकाः साधवः, सङ्काढयाविहरन्ति सोऽत्रजयतान्नित्यो विदेहो गुणः ॥१६॥ अर्थ:- जहाँ पर पुण्यशाली देव गण मोक्षपद की प्राप्ति के लिये जन्म लेते हैं । जहाँ से कितने ही भव्य जन समीचीन तप के द्वारा मोक्षपद प्राप्त करते हैं, कितने ही ब्रतों के द्वारा स्वर्ग प्राप्त करते हैं, तथा जहाँ पर तीर्थकर देव, गणधर देव, प्राचार्य, उपाध्याय और साधुगण संघ सहित विहार करते हैं, और जहाँ से रत्नत्रय प्रादि गुरगों के द्वारा देह से रहित होते हैं ऐसा वह विदेह क्षेत्र नित्य ही जयवन्त रहो ॥१०॥ अधिकारान्त मङ्गलाचरण :-- ये तीर्थेशाः सुराा जगति हितकराः सद्विदेहे च जाता, अस्माद्ये मोक्षमाप्ता हतविधिवपुषोज्ञानर पाश्च सिद्धाः ।
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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