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सिद्धान्तसार दीपक तत्सीतोदोत्तरे भागे स्यादवध्यापुरी परा । पुण्यकर्माकरीभूतास्यक्ति धर्ममातृका ॥१३९।। तदन्ते शाश्वती विध्या वेदिका स्थूल विग्रहा।
बनस्यापर भद्रादिशालस्यांघ्रिप-शालिनः॥१४०।। अर्थ:--गन्धिला नाम देश के आगे अनादि निधन देवाद्रि नाम का श्रेष्ठ वक्षार पर्वत है। इसके शिखर पर सिद्धट, गन्धिला, गन्धमालिनी और देवकूट नाम के चार कूट हैं, इन्हीं मणिमय चार कूटों से वह पर्वत अलंकृत है ।। १३६-१३७ ॥ देवाद्रि वक्षार के आगे गन्धमालिनी नाम का अद्भुत देश है, जिसके दो नदियों और विजया पर्वत के द्वारा छह स्त्र हुये हैं। इस देश के मध्य में और सीता महानदी की उत्तर दिशा में अवध्या नाम की श्रेष्ठ नगरी है, जो पुण्यकर्म की खान स्वरूप और स्वर्ग मोक्ष देने वाले धम की माता के समान है।।१३८-१३६॥ इस देश के बाद अन्त में अंघ्रिप । ) वृक्षों से सुशोभित, अनादि निधन, स्थूलकाय और दिव्य, पश्चिम भद्रशाल वन की वेदी है ।।१४०॥ प्रब बनों, वेदियों, वक्षार पर्वतों और देशों का प्रायाम कहते हैं :--
वेवारण्यद्वयोर्भूतारण्याख्ययोर्चनद्वयोः । अष्टानां धनवेदोना द्वयष्टवक्षारभूमृताम् ॥१४१॥ द्वात्रिशद्विषयानां चायामः स कीतितो बुधः।
सौताव्यासोन यिस्तारो विदेहार्धस्थयो भुवि ।।१४२॥ अर्थ:-सीता नदी के विस्तार ( ५०० यो०) को विदेह के विस्तार ( ३३६८४४. यो. ) में से घटा { ३३६८४४ -- ५०० ) कर शेष को प्राधा ( ३३१८४४२) करने पर जो लब्ध प्राप्त हो उतना ही पायाम प्रमाण ( १६५६२२ यो.) दो देवारण्यों, दो भूतारण्य वनों, पाठ वन वेदियों, सोलह वक्षार पर्वतों और बत्तीस देशों का है ऐसा विद्वानों के द्वारा कहा गया है ॥१४१-१४२।।
उसी का विशेष कहते हैं :--
हि देवारण्यद्विभूतारण्याष्ट वेदिकाषोडशवक्षारद्वात्रिंशद्देशानां प्रत्येकमायामः पोडशसहस्र पंचशतद्विनवतियोजनानि योजन कोनविंशति भागानां कले च ।
अर्थ:--दो देवारण्यवनों दो भूतारण्य वनों, ( चार वनों की ) श्वाठ वेदिकाओं, सोलह वक्षार पर्वतों और बत्तीस देशों में से प्रत्येक का आयाम सोलह हजार च सौ बानवे योजन और एक योजन के उन्नीस भागों में से दो भाग ( १६५६२ यो०) प्रमाण है॥