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________________ षष्ठोऽधिकारः [ १७७ लक्षणव्यंजनेयुक्ताः पल्यङ्कासनसंस्थिताः । पूर्णसोममुखाः सौम्याः समस्तविक्रियातिगाः ॥२७॥ दिव्यभामण्डलान्तर्बाह्योच्छेदिततमश्चयाः। प्रफुल्लपासवहस्ता पारक्तचरणाम्बुजाः ॥२६॥ अजनाभमहाकेशा प्रताम्रनयनोत्पलाः । विद्रुमाभाधराः छत्रत्रयशोभितमस्तकाः ॥२६॥ विसिंहासनारूढा भामण्डलातविग्रहाः। महार्चनाचितायोज्यमाना: प्रकीर्णकः ॥३०॥ मिरौपम्या जगन्नेत्रप्रियाः पुण्याकरा इव । हसन्त्यो वा बदन्त्यो वा मुखचन्द्र ण संततम् ।।३१।। त्रिजगन्नसुराराध्यायन्याः स्तुत्यामया सदा । राजन्ते श्रीजिनेन्द्राणां प्रतिमादिव्य मूर्तयः ॥३२॥ अर्थ:-लोक्यतिलक जिनभवन में वज्र एवं इन्द्रनीलमणिमय एक पीठ है जो कुछ अधिक सोलह योजन लम्बा, प्राह योजन चौड़ा, दो योजन ऊँचा, अत्यन्त शुभ और परमोत्कृष्ट है ।।१६-२०|| वहाँ पर सोलह योजन लम्बी, पाठ योजन चौड़ी, छह योजन ऊँची और अर्ध योजन नींव से युक्त मरिणमय सोपान पंक्ति है, तथा उस सोपान पंक्ति में एक सौ पाठ सोपान हैं, जिनमें से प्रत्येक सोपान कुछ कम चार सौ पैंतालीस धनुष ऊँचे हैं। पीठ पर दिव्य और उत्तम रत्न वेदियां हैं, जो अब धनुष ऊँची और पांच सौ धनुष चौड़ी हैं । उन वेदिकाओं पर श्री जिनेन्द्र भगवान् को ऐसी एक सो पाठ प्रतिमाएँ सुशोभित हैं, जो अत्यन्त विभावान् मरिण एवं स्वर्णमय हैं। प्रविनश्वर अर्थात् अकृत्रिम हैं। प्रत्यन्त शुभ, मनोज्ञ, देखने में अति प्रिय और दिव्य अङ्ग वाली हैं। पांच सौ धनुष ऊँची हैं, वस्त्राभूषणों से रहित अर्थात् दिगम्बर मुद्रा युक्त हैं, और करोड़ों सूर्यों के तेज से भी अधिक कान्तिवान् हैं ॥२१-२६।। वे जिन प्रतिमाएं (१०८) लक्षणों एवं (९००) यजनों से युक्त तथा पूर्ण चन्द्र के सदृश मुख वाली हैं। उनकी शरीराकृति अत्यन्त सौम्य और सर्व विकारों से रहित है, वे सभी पद्मासन से स्थित हैं। उनका भामण्डल अन्तर-बाह्य अन्धकार के समूह को नष्ट करने वाला है। उनके करकमल एवं चरणकमल खिले हुए कमल सदृश अर्थात् कुछ कुछ लाल हैं, केश अञ्जन सदृश काले, नेत्र कमल लालिमा से रहित, मोंठ विद्रुम को प्राभा सदृश लाल और मस्तक तीन छत्रों से सुशोभित है । दिव्य सिंहासन पर विराजमान उनका शरीर अत्यन्त कान्तिवान् है । वे महापूजा से पूज्य, यक्षों द्वारा वोज्यमान चामरों से युक्त, उपमा रहित, तोन लोक के नेत्रों को अत्यन्त प्रिय और पुण्य की खान के समान
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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