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________________ षष्ठोऽधिकारः [ १६३ वहाँ भद्रशालवन की चारों दिशाओं में अनेक प्रकार की विभूतियों से युक्त चार जिनालय हैं । इसी प्रकार नन्दन, सौमनस और पाण्डुक इन प्रत्येक वनों में भी चार-चार चैत्यालय हैं। इन चैत्यालयों के व्यास प्रादि का विवेचन मैं (प्राचार्य) आगे करूंगा। नन्दनबन को ऐशान दिशा में सौ योजन ऊँचा, मूल में सो योजन चौड़ा, और शिखर पर ५० योजन चौड़ा अनेक रत्नमय बलभद्र नामका एक काट है । उस कूट के ऊपर अनेक प्रकार के कोट, प्रतोलिका, गोपुरद्वार एवं वन आदि से वेष्टित नगर हैं। जिनका अधिपति बलभद्र नाम का व्यन्तरदेव है, जो वहीं रहता है ! नन्दन वन में मेरु की पूर्वादि चारों दिशाओं में मानी, चारण, गन्धर्व और चित्र नाम के भवन हैं । जो ५० योजन ऊँचे और ३० योजन चौड़े तथा नाना प्रकार की मणियों से खचित हैं । इन भवनों के स्वामी क्रमशः रक्त, कृष्ण, स्वर्ग और श्वेत वर्ण के आभूषणों से अलंकृत तथा देव समूह से समन्वित सोम, यम, वरुण और कुबेर हैं। इन प्रत्येक लोकपालों की रूए लावण्य प्रादि से विभूषित साढ़े तीन करोड़ व्यन्तर जाति की दिक्कन्याएं हैं। विशेषार्थ:-नन्दनवन में मेरु की पूर्व दिशा में मानी नामका भवन है, जिसमें रक्तवर्ण के अलङ्कारों से प्रसंस सोन लोकपाल साढ़े तीमा जोड दिनुमारियों के साथ रहता है। दक्षिण के चारण भवन में कृष्णवर्ण के अलङ्कारों से सुशोभित यम लोकपाल अपनी साढ़े तीन करोड़ दिक्कुमारियों के साथ रहता है । पश्चिम दिशा सम्बन्धी गन्धर्व नामक भवन में स्वर्णाभा सदृश आभूषणों से विभूषित वरुण लोकपाल अपनी साढ़े तीन करोड़ दिक्कुमारियों के साथ और उत्तर दिशा सम्बन्धी चित्र नामक भवन में श्वेतवर्ण के प्राभूषणों से युक्त कुवेर नाम का लोकपाल अपनी साढ़े तीन करोड़ दिक्कन्याओं के साथ निवास करता है। सौमनसवन में मेरु को चारों दिशामों में क्रमशः बज, वज़प्रभ, सुवर्ण और सुवर्णप्रभ नाम के चार भवन हैं। जो पच्चीस योजन ऊँचे और पन्द्रह योजन चौड़े हैं। पाण्डुकवन में मेरु की चारों दिशाओं में उत्कृष्ट सिंहासन एवं पल्यङ्क प्रादि से सहित पंचवर्ण के रत्नमय क्रमशः लोहित, अंजन, हारित और पाण्डु नाम के चार भवन हैं। जो १२३ योजन ऊँचे और ७३ योजन चौड़े हैं। इन उपर्युक्त आठों भवनों में से प्रत्येक में साढ़े तीन करोड़ दिक्कुमारियाँ निवास करती हैं। इन आठों गृहों के स्वामी जिनबिम्ब के चिह्न से चिह्नित मुकुट वाले, देव समूह से वेष्टित तथा क्रमशः रक्त, कृष्ण, स्वर्ण और श्वेत वस्त्र एवं अलङ्कारों से अलंकृत, क्रमानुसार स्वयंप्रभ, अरिष्ट, जलप्रभ और वर्गप्रभ ( कल्प) विमानों में निवास करने वाले तथा सौधर्मशान इन्द्रों के सम्बन्ध को प्राप्त सोम, यम, वरुण और कुवेर नाम के लोक प्रसिद्ध चार लोकपाल हैं। इनमें सोम और यम लोकपालों की प्रायु २३ पल्य तथा बरुण प्रौर कुबेर की प्रायु पौने तीन (२१) पल्य प्रमाण है।
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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