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सिहाला दीपक कुलाचलों के गाध (नींब) का एवं उनके ऊपर स्थितकूटों का प्रमाण
एकादशमहाकूटः शिखरेऽलंकृतो महान् । हिमवान् राजतेऽगाधः पञ्चविंशतियोजनः ॥४१॥ अटकूटर्युतो मूनि पञ्चाशयोजनैर्वरः । भूमध्ये भाति तेजोभिर्महादि हिमवान गिरिः ॥४२॥ नवटाश्रितो मूनि शतयोजनकन्दयुक् । निषधश्न तथा नीलः कन्दकूटहि तत्समः ॥४३॥ पञ्चाशयोजनागाधो रुक्मी कटाष्टभूषितः ।
शिखरोकन्दकूटाभ्यां भवेद् हिमवता समः ।।४४।। अर्थः-हिमवान् पर्वत की गाध (नीव) २५ योजन प्रमाण है, और इसका शिखर ग्यारह महावटों द्वारा अलंकृत है । महाहिमवान् पर्वत को नीव ५० योजन प्रमाण है और इसका कवभाग (शिखर) दैदीप्यमान प्राः कूटों से शोभायमान है । निषध और नील पर्वतों को नीच समान अर्थात् सौ सौ (१००) योजन प्रमाण है, और इनके अग्रभाग भी 8-६ महाकुटों से अलंकृत हैं । रुक्मी कुलानुल की नीव ५० योजन है, और उसका शिखर पाठ कूटों से सुशोभित है। इसी प्रकार शिस्त्ररिन् कुलाचल की नीव २५ योजन प्रमाण है, और उसका ऊर्ध्व भाग ११ महाकूटों से अलंकृत है ।।४१-४४॥ छह कुलाचलस्थ ५६ महाकुटों के नाम और स्वामी:
सिद्धायतननामाढय हिमवत्कूटमूजितम् । अपरं भरसाभिस्यमिलाकूट चतुर्थकम् ॥४५॥ गङ्गाक्टं श्रियःकूटं रोहितासिन्घुसंज्ञके । सुराहमवते फूटे फूटं चैश्रवणान्तिमम् ॥४६॥ इत्येकाशकूटानि मूनि स्यु हिमगिरेः । सिद्धायतन कूटाख्यं महाहिमवताह्वयम् ।।४७।। फूट हैमवतं रोहित्कूटहीकूटनामकं । फूटं च हरिकान्ताख्यं हरिवर्षाभिधं ततः ॥४८॥ बैडूर्यमष्टकूटानोति स्युमहाहिमाचले । सिद्धाख्यं निषधाभिल्यं हरिकूटं विदेहरुम् ॥४६॥