SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 122
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ____७६ ] सिद्धान्तसार दीपक नारका भीषणा एते कृपारणकृतपाणयः । निष्ठुरास्तजयन्स्यस्मान् निष्कारणरणोतहाः ।।१०२॥ पक्षिणः परुषापाता इते नोऽभिद्रवन्त्यलम् । सारमेयाश्च खायही भौषयासोऽधीताम् ।।६०३। इतः स्फरन्ति दुानान् नारकाणां प्रधावताम् । इतश्च करुणाकन्दस्वराः कथितात्मनाम् ॥१०४॥ अन्धकूपसमा एते प्रज्वलन्स्यन्तामणा । दुर्गन्धा नारकावासा विश्वक्क्लेशाशुभाकराः ॥१०॥ दस्सहा वेदनाहषा बनिवाराश्च नारकाः। प्रकाले दुस्त्यजाः प्रारणाः कृत्स्नमनासुखायहम् ॥१०६॥ प्रतः प्रागजिता श्रेयसा वयं कवलीकृताः । क्व यामः क्व च तिष्ठामः कोऽपि त्राता न जातु नः ॥१०७॥ तरिष्यामः वामम-पारं वःखवारिधिम् । नो यास्थति कथं कालो बहुसागर-जीवितम् ॥१०॥ इत्थं चिन्तयतां तेषां शोकिना क्लेश भोगिनाम् । अन्तहियाङ्गदाहिन्यो जायन्ते व्याधयस्त्रयः ॥१०६॥ महत्यः शोकसन्तापवुःखक्लेशादिखानयः । ताः को वर्णयितुं शक्तो विद्वांस्तेषां च्युतोपमाः ॥११०।। अर्थ:-अहो ! मृत्यु से स्पर्शित दुःखों के प्राचयभूत यह भूमि जल रही है । दुखद है स्पर्श जिसका गेसी अग्नि करणों को फैलाने वालो वायु बह रही है । दिशाओं का आभोग दीप्त हो रहा है, यह क्षेत्र अति भयास्पद है और यहाँ मेषों से नित्य ही सन्तप्त रेत को दुर्वृष्टि हो रही है ।।६७-६८॥ ये विष वन चारों ओर विष लताओं से युक्त वृक्षों द्वारा व्याप्त हैं । ये भयङ्कर प्रसिपत्र वन मसिपत्रों द्वारा व्याप्त हैं ।।६६ ये लोहमय स्त्रियाँ वृथा हो कामाग्नि को बढ़ा रही हैं । ये क्रूर और दुष्ट असुर कुमार देव हम लोगों को जबरदस्ती लड़ा रहे हैं ।।१०।। ऊपर उठाये हैं श्रुथने ( मुख का अग्रभाग ) जिनने और जो जलती हुई ज्वाला से युक्त आग उगल रहे हैं ऐसे ये गधे और ऊँट हमें निगलने के लिये पीछे पीछे दौड़ रहे हैं। हाथ में है तलवार
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy