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श्रीपालका वीरदमनसे युद्ध । ।१६५ प्रीति करता है, जो किसी न किसी दिन बहुत धोखा खाता है, जो कुशोल होकर सेवन करता है, जो भंग पीकर बुद्धिमान बनता है, जो पतित होकर योही ठौर२ वादविवाद करता है, जो हंस मानसरोवर छोड़ देता है, जो वेश्या लज्जावती बन जाती है, जो जूवामें सच बोलता है, जो दुसरेकी संपत्तिपर ललचाता है, उससे अधिक मूख संसारमें कौन है ?' ___ बोरदमनको उक्त नोति सुनकर लज्जा तो अवश्य हुई, परंतु वह उस समय लाचार था, बीर पुरुष युद्ध में नहीं हटते इसलिए उसने धनुष उठा लिया। और ललकार कर बोला_ 'बस रहने दे तेरो चतुराई। अब कायरोके बातें बनानेका समय नहीं है। दि कुछ पाहुना है तो सानो भा।' तब तो श्रीपालसे नहीं रहा गया वे कान के पास धनुष खींचकर सन्मुख हो गये । सो जैसे अर्जुन और कर्ण, रावण और लक्ष्मण, तथा भरत और बाहुबलीका परस्पर युद्ध हुआ था, वैसा ही होने लगा। जब सामान्य हथियारोंसे बहुत युद्ध हुआ और कोई किसोको न हरा सका, तब शस्त्र छोड़कर मल्लयुद्ध करने लगे, सो बहुत समय तक योहो लिपटते तो रहे, परन्तु जब बहुत देर हो गई, तब श्रीपालने वीरदमनको दोनों पांव पकड़के उठा लिया और चाहा कि पृथ्वीपर दे मारे परन्तु दया आ गई, इसलिये धोरेसे पृथ्वोपर लिटा दिया । सब ओरसे 'जय जग' शब्द होने लगे 1 वोरोंने श्रोपालके गले में जयमाल पहिनाई और बोले
राजन् ! तुम दयालु हो। एश्चात् जब श्रीपालने बीरदमनको छोड़ दिया तब वीर दमन बोले -- 'हे पुत्र ! यह ले, अपना राज्य सम्हाल । मैंने तेरा बल देखा। तू यथार्थमें महाबली है । हमारे इस वंशमें तेरे जैसे शुरवीर ही होने चाहिये।'