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________________ धीपालका चंपापुर जाना। तब दूत फिर बोला-'हे राजन् ! आप अपने मनका यह गिथ्याभिमान कोहली भीमाल रा का राजा है। मही. मंडलपर जितने बडे२ राजा हैं कि जिनके यहां आपके सरीखे दासत्व करते हैं उन सबने उनकी सेवा स्वोकार कर ली है। '. फिर तुम्हारी गिनती क्या है ? बनमें बहुत जानवर होते है, परंतु एक हाथी की चिंघाडमे वे कोई नहीं ठहर सकते और बसे हजारों हाथी भी एक सिंहको गजनासे दिशा विदिशाओंको माग जाते हैं। हजारों सांपोंके लिए एक गरुड़ ही बस है। इसी प्रकार तुम जैसे करो हो मजा आ जाब तो भी उस भुजबलीके एक ही प्रहार मात्रमें टिगर्व होकर शस्त्र छोड़ देंगे, अर्थात बह • एक ही बार में इसका संहार करनेको सभी हैं। तब क्रोधकर बो र दमन बोले- अरे धोठ ! तू मेरे सामनेने हल जा । मैं तुझे क्या मारू ? क्योंकि राजनीतिका यह धर्म नहीं है जो दूतका मा । जान । तुझे मारने से मेरो शोभा नहीं है । तू मेरे हो मामने निन्दा और श्रीपालकी बडाई करता है । क्या मैं 'उगे नहीं जानता हूं वह मेग ही लड़का तो है । मैंमें जम गोद में खिलाया हैं और कोही होकर वह जब घर में निकाला था, तब रोता हा गया था। सो अब कहाँका ब वान हो गया ? और उसके पास इतनी स . से आई, जो मुझसे लगने का साहस करता है ? जा जा, देख लिय' ने उसका बल ! उमरे कह दे कि, क्यों अपनी हंसी का है ? तत्र वह दुत फिर बोला देखो राजाजो ! अभिमान मा करो। भरतने अभिमान किया सो चक्रवर्ती होकर भो बाहुबलिसे अपमानित हुये । रावण ने मान किया, तो लक्ष्मणसे माग गया । दुर्योधनका मान भीमने मदन किया । जरासिंध को श्रीकृष्मने मारा, इत्यादि ब२ पुरुषोंका भी मान नहीं रहा तो तुम्हारी गिनतो ही क्या हैं ? इसलिए मैं फिर कहता हूँ कि जो अपना भला चाहो तो
SR No.090465
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
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