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________________ ॥ ६ भट्टारक विश्वसेन ॥ काता संगीत की राहो के भट्टारक भुवन कति के शिष्य म. विश्वसेन हुए है आपका समय १७२५ से १५० तक का है आपके शिष्य भ० मझेचन्द्र थे तथा महीचन्द्र के शिष्य म. सुमांतकीर्ति थे। जो कि अत्यधिक प्रसिद्ध हुए हैं भ० सुमलिकीर्ति उद्भव विद्वान और परमतवादियों का मान मर्दन करने वाले थे। भविश्वसेन की सिद्ध जयमाला के अलावा और कोई कृति उपलब्ध नहीं हुई है एक भ० विश्वसेन ईटर को काष्ठा संघी गद्दी पर भी हुवे हैं, जिन का समय विक्रम सं०१४६. सेर तक का है जिन्होंने परणवती क्षेत्र पाल पूजा की रचना की है। ॥ ७ ब्रह्म चन्दसागर ॥ काष्ठा संघी सूरत की पारी के भ० जयकीर्ति के शिष्य थे। आपका समय १७०० से १७२. तक का है आपने भाषा में कई पूजार तथा राम याद की रचना को है। आपकी रचित शांतननाथ पूजा इस संग्रह में छपी है। ॥ ८ भट्टारक चन्दकीर्ति ॥ ईडर की काष्ठासंघी गद्दी के सुप्रसिद्ध भ० श्री भूषण के शिष्य भ. चन्द्रकीर्ति थे। आप हिन्दी के साथ २ सस्कृत तथा प्राकृतिक भाषा के भी अच्छे विद्वान थे। आपने संस्कृत में श्रादिपुराण पार्श्वनाथ पुराण उपासक,ध्ययन श्रावकाचार श्रादि अच्छे २ ग्रंथों की रचना की है ये ग्रंथ मा यकीर्ति सरस्वती भवन ऋषभदेव में उपलब्ध हये हैं इनकी टीका होने की खास आवश्यकता है। बहे शास्त्रों के अलावा कई बड़ी ३ पूजाए उधापनादी क भा आपन रचना की है। दुखः है कि अभी तक पापको कोई कृति प्रकाश में नहीं पाई है। आपकी रचित पंचमेरु पूजा तथा शांतिनाथ पूजा इस संग्रह में प्रकाशित की गई है।
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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