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१८ ॥
चन्दन कुंकुम कपूर विलेपन पूज्य स्
सुगन्ध शरीर लही करी आत्मा निर्माशयं ॥ ज्येष्ठ जि० ॥ चन्दनम् ॥ मक्ताफल लिए उत्स
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पूज्य पद लही करी आत्मा निर्मलयं ॥ ज्येष्ठ जि० ॥ श्रक्षतम्
।
बाही जुही मच कुंद सेवत्री पूज्य रयं पूज्यपद लक्षी करो आत्मा निर्मलयं
।
उत्तम अन्न बहु भाणिय, पक्वान्न पूज्य वेदनीय कर्म विनाशिय श्रात्मा निर्मलयं कपूर तणी बहु ज्योति तु च्यारी पूज्यस्यं घातीय कर्म विनाशिय आत्मा निर्मलयं
।
ज्येष्ठ जि. ॥ पुष्पम्
रप 1
॥ ज्येष्ठ वि० ॥ नैवेद्यम् ॥
॥
ज्येष्ठ जि० ॥ दीपम् ॥
अगर कपूर कृष्ण गुरू धूवह पूज्य रयं 1
anate कर्म विनाशिय आत्मा निर्मलयं । ज्येष्ठ जि० धूपन
आ नारिंग जंबीर नारीकेल पूज्यश्यं । मनवांछित फल मांगहुँ भारमा निर्मलय ॥ ज्येष्ठ नि० ॥ मंगल गीत महोत्सव वह पूज्य र
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स्तवन करी फल मांगहु आत्मा निर्मलय ज्येष्ठ जिल् " अर्धम् ॥
सकल कीर्ति गुरू प्रणमिने जिनवर पूप ब्रह्मम जिन दास सु आत्मा निर्मलप
फलम् ॥
रय
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॥ ज्येष्ठ जि० । कुसुमांनलिः ।
॥१८॥