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कहते । बिसका च्याट तथा गहराई एक-एक अरन्नि ही हों तथा मेखला भी उसी प्रमाण से ३ हों। इस कुएड की अग्नि दविणाग्नि कहलाती है तेनों कुण्डों के भीतरी भाग की दीवारों को बराबर रखना चाहिये । एवं कुंड को रोली (गुलान) से रंगदेना चाहिये । यद्यपि तीन कुण्ड बनाने की विधि लिखी है परंतु संक्षेप में करना हो तो एक ही चतुष्कोण कुण्ड बनाकर उसमें हम आहूतिये देनी चाहिएं। यदि वैसा की संभव न हो तो पृथ्वीपर ही रंगावली से चौकोर कुण्ड बना लेना चाहिये ।
सुक् और खुवा 8 अग्नि में बिस पात्र से स.कल्प ( होम द्रव्य ) डाला जाता है उसे सपा कहते हैं तथा जिससे धी होमा जापा है उसे मुक् क ते हैं। स्वक् बरगद को लकड़ी का तथा सवा चंदन का बनवाना चाहिये । दोनों पीपल की लकड़ी के बनावे पीपल की लकड़ी भी न मिले तो पीपल के पचे काम में लेवे ।
॥ समिधा ॥ होम में ओ लकड़ियां डाली जाती हैं उसे समिधा कहते हैं । भाक, हाक, प्राम, पीपल, शमी, बरगद, खदिर ( खैर, ) अपामार्ग प्रादि की सूखी धुन रहित सकड़ियां उमा रकाचंदन. सफेद चंदन यादि की पतली व सीधी लकड़िशें की समिधा बनानी चाहिये ।