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________________ २४॥ श्री साम्र ककटी सुदाहिमादिमि फलैः वर्ण मिष्ट मौरभादि चक्षुगदि मोदनैः । भूत प्रे. ॥ फलम् ।। जीवनासिता गुरुद्रयाक्षत प्रसनकै, चारू चारू ३ प्रदीप धूपरूप सल्फलैः । सुवर्ण भाजन स्थितैः रमा रमा रमा भिदैः, श्री ज्ञान भूषणाय संमहामहेक विच्छिदैः । अयम्।। ॐ जयमाला लक्ष्मीधामकरं जगत्सुखकर, संदीर्घ कायं वरं ।। रात्री जागर वाहनं, सुरवरं करवालया धारणं ॥ निर्विघ्नं ग्रह नाशनं भयहरं भूतादि त्रासोत्करं । __वंद श्री जिन सेवके श्ररिहरं, श्री क्षेत्र पालं सा ॥ १ ॥ सुरासुर खेचर पूनित पाद, गुणाकर सुन्दर हूंकृत नाद । मनोहर पन्ना कंठ विशाल, सदा पु महोदय क्षेत्र सुणल ॥२॥ सुडाकिनी शाकिनी नाभन वीर, मिनेश्वर पूनन सेवन धीर।। अनूपम शोभित मक वाल, सदासु.. ......... ॥ ३ ॥ सुलाकिनी हाकिनी पन्नगत्रास, सुभूपति तस्कर दुर्भिक्षनाश । ' निशाकर शेखर मंडित भाल, सदासु.......... ॥ ४ ॥ सुमंगल शब्दित शूकर वृद, सुराक्षस भोक्षस दुर्भय कंद ।
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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