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मा१२
भोगैश्या भिवृद्धयर्थ, दिपामि क्षिप्र कल्मषं ।
इति इन्द्र दर्भः ॥ ॐ पूर्वस्यां दिशि कुडलांशु निश्य, व्यालीढ़ गएड स्थलन् ॥ शक्र मूर्धनि बद्ध साधु मुझटं, सहद मैगवतम् ॥ पत्नी बांधवभृत्य वर्ग सहितो, देवं समाहानये ॥
पाद्यार्धा चत दीप गंध कुसुमं, दत्तं मया गृहताम् ॥ ॐ पूर्वस्यां दिशि क्षीर जलधि संजात डिण्डीर पिण्ड पाण्डुर शरीर शोमां, गुण निर्मित चारु चाप सहशोन्नत पृष्ठ वंश पार्श्व विलम्वितं, घंटा युगल कराल टंकारं मुखरित दिगन्तरं, सुवर्ण रूचिर नक्षेत्र माला विराजित कुंभस्थल नभस्तन तुग तरूयपुष्माए पैराबत मभिराज मारुः कर कलश कुलिश रश्मि रंजित समस्त भुवनं, नाना विध महामणि रचित शिखर शेखर बिन्यास शोमि तोनमांग, प्रसाद चिन महत्तर सुर परिषदानुपातं पौलोम सहितं, सपरिजनं सपरिवार इन्द्र देव माह्वानयामहे, स्वाहा ॥ हे इन्द्र आगच्छ २ इन्द्राय स्वाहा ।
इन्द्र महनराय स्वाहा, इन्द्रपरि जनाव स्वाहा, इन्द्रानु चराय स्वाहा, नये स्वाहा, अनत्माय स्वाहा, सोमाय स्वाहा, वरु णाय स्वाहा, प्रजापत्ये स्वाहा, ॐस्वाहा भूः स्वाहा, भुवः स्वाहा, स्व. स्वाहा, ॐ भूः स्वस्त धाय स्वाहा,, इन्द्र देवाय स्वगण परि वृताय इदं अयं पाद्य गंधं पुष्पं दीपं चरु' बलिमक्षतं स्वस्तिक यज्ञभागच भावानिवेदितं यजामहे प्रतिगृ यतां प्रतिगृ यामिति स्वाहा