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( शान्तिसुधासिन्धु )
द्रव्य से पूजा करना अर्चन है । नमस्कार करना प्रणाम है।
मनको शुद्ध रखना मनशुद्धी है । वचनको शुद्ध रखना वचनशुद्धि है । कायको शुद्ध रखना कायशुद्धि है और आहारको शुद्ध रखना आहार शुद्धि है । इस प्रकार मुनियोंको दान देते समय नी प्रकार की भक्ति करनी पड़ती है । तथा क्षुल्लक ऐलकोंके लिए भी ये भक्ति करनी पड़ती है। इसके सिवाय अन्य धावकों के लिए न्योता देना प्रतिग्रह है । उनक आनेपर उनके योग्य स्थानपर उनको बिठाना उच्चस्थान है। उनके पैर धुलाना पादोदक है। उनकी योग्यतानुसार पहावनी दुपट्टा देना वा उनकी प्रशंसा करना अर्चन है । यथायोग्य रीतिसे उनको जुहार करना प्रणाम है और मन वचन कायमें किसी प्रकारकी मायाचारी नहीं करना मनाद्धि बचनशद्धि कायशद्धि है तथा उनको शुद्ध भोजन कराना आहार शुद्धि है। इस प्रकार श्रावकोंके लिए उनकी योग्यतानुर नवधा भक्ति की जाती है । प्रत्येक गृहस्थके घर प्रतिदिन भोजन बनता है यदि वहीं भोजन शुद्ध बनाया जाय और यह धारणा रक्खी जाय कि " यदि कोई पात्र मिलेगा तो उसको खिलाकर ही खाऊंगा " तो वही भोजन बनाना पुण्य का कारण बन जाता है । अन्यथा पीसने फुटने में, चौका लगाने में. पानी आदिके भरने में बहुतसी हिसा होती ही है । यदि उस भोजनमें पात्र...का ध्यान न हो तो फिर वह उस भोजनका बनाना हिंसाकाही साधन समझना चाहिए । पात्रदानका ध्यान परिणामोंको शुद्ध रखता है और फिर वह भोजन शुद्ध परिणामोंसे ही बनाया जाता है । इसलिए उसके बनाने में विशेष हिंसा नहीं होती तथा जो कुछ होती है वह परिणामोंकी शुद्धतासे वा पात्रदानकी धारणाके संस्कारसे व्यर्थ हो जाती है नष्ट हो जाती है । इसलिए प्रत्येक गहस्थको पात्रदानके अभिप्रयासे ही भोजन बनाना चाहिए और पात्रदानके समयको टालकर ही भोजन करना चाहिए । अथवा पात्र न मिननेपर किसी एक रसका त्याग कर देना चाहिए । गृहस्थ के लिए धनके सदुपयोग करनेका और पात्रदान करनेका यही सर्वोत्तम उपाय है । जो लोग केवल पेट भरनेके लिए ही भोजन बनाते हैं वे पशओंसे भी बडकर नीच पश हैं।
प्रश्न- स्याद्वा धनार्जने पापं न गुरों सिद्धये वद ?
अर्थ- हे भगवन् ! अब मेरी आत्माकी सिद्धिके लिए यह बतलाइए कि धन कमाने में पाप लाता है वा नहीं ?