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________________ (शान्तिसुधा सिन्धु ) प्रकार जैन सिद्धान्तके रहस्योंको न बतलाने से भी जैन सिद्धान्तोंकी हानि हो जाती है। तथा इनका यदि व्यय किया जाय तो संसारमें सदाकाल इनकी वृद्धि होती रहती । यह समझकर धन, बुद्धि, लक्ष्मी आदिका सदाकाल व्ययही करते रहना चाहिए। इनको भूमिमें गाडकर सुरक्षित नहीं रखना चाहिए । विद्या, बुद्धि, और वनका व्यय करनेसे इस संसारमें सदाकाल इनकी वृद्धि होती रहती है । ૪ भावार्थ - विद्या और बुद्धि ये दोनोंही ज्यों-ज्यों खर्च किये जाने है, त्यों-त्यों बढ़ते हैं । यदि इनको खर्च न किया जाय तो ये दोनोंही घडही जाते है. या नष्ट हो जाते हैं। विद्याका खर्च उसका दान देना है, वा पढ़ाना है। विद्या पढ़ानेसे बढती है, और न पढानेसे घट जाती है. वा नष्ट हो जाती है । बुद्धिका खर्च परमार्थका बिचार है | परमार्थका विचार करनेसे वा आत्माके हित-अहितका विचार करने मे बुद्धि तीव्र हो जाती है, तथा परमार्थका विचार न करनेसे बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है, वा नष्ट हो जाती है। बडी-बडी बावडियोंका जल ज्यों-ज्यों खर्च किया जाता है, त्यों-त्यों जल बढता रहता है । यदि उनका जल खर्च न किया जाय तो वह सह जाता है, इसलिए विद्या, बुद्धि, वा जलका खर्च करनाही अच्छा है, बड़े-बड़े तालाबों का जलभी खर्च करनेसेही बढ़ता है । यदि तालाबोंका जल खर्च न किया जाय तो वह तालाब का जल सड जाता है, और बंद कर देना पडता है। इसलिए बड़े-बडे तालाब से नहरे निकालते हैं, वा अन्य किसी रीतिसे खर्च करते हैं । इसप्रकार लक्ष्मीभी कूएँके जलके समान रहती है, जितना खर्च करते रहा उतनाही बढता रहता है। इसका भी कारण यह है, कि यह लक्ष्मी पुण्यकर्मके उदयसे प्राप्त होती है, जितना पुण्यकर्मीका उदय होता है, उतनीही लक्ष्मी बनी रहती है। लक्ष्मीका घटना बढना पुण्यकर्म के घटने बढने के आधीन है, सर्वके आधीन नहीं है । यदि खर्च न किया जाय तो उतनीही बनी रहती है, और यदि स्वर्च किया जाय तो उस पुण्यकर्मके उदयसे फिर वह जाती है । इसलिए लक्ष्मीको खर्च करनाही चाहिए। भगवान जिनेंद्रदेवकी पूजा-प्रतिष्ठामें खर्च करना, मुनिराजके रत्नत्रयकी वृद्धि करनेमें खर्च करना, प्रभावना अंग में खर्च करना, चारों प्रकारके दान देने में खर्च करना, दीन-दुखियोंके दुःख दुर -
SR No.090414
Book TitleShantisudha Sindhu
Original Sutra AuthorKunthusagar Maharaj
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages365
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
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