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________________ प्रागम, सिद्धान्त एवं चर्चा ] [ १ १७६. प्रतिसं० ७ पत्र० ९८२ | ले० काल सं० x पूर्ण । वेष्टन सं० २३ । प्राप्तिस्थान- दि० जैन पंचायती मन्दिर करौली । १७७. प्रतिसं० ८ पत्रसं० ३०६ । ले० काल -- x । पूर्ण वेष्टन सं० १ प्राप्सि स्थानदि० जैन मन्दिर चेतनदास पुरानी डीग | विशेष - प्रति संदृष्टि सहित है। पत्र सं० १५६ तक लब्धिसार क्षपणासार है । ६७ वें पत्र में irit भूमिका तथा अन्तिम ५० पत्रों में लब्धिसार, क्षपरासार तथा गोम्मटसार की भाषा है । १७८ प्रतिसं० ६ । पत्र सं ० ५०४ । से० काल ० – १८१६ | पूर्ण वेष्टनसं । प्राप्तिस्थान – उपरोक्त मन्दिर । विशेष - पत्र सं० २७० से ५०४ तक दूसरे वेष्टन सं० में है । १७६. प्रतिसं० १० । पत्र सं० १००० | ले० काल स० १६५८ कार्तिक सुदी १० । पूर्ण । नेष्टन सं ५७ | प्राप्ति स्थान – दि० जैन मन्दिर कोट्योका नेवा (वृदी) | विशेष – सम्यक्ज्ञान चन्द्रिका टीका सहित है । १०. प्रतिसं० ११ । पत्र सं० ७३२ । ले० काल स० - X। पूर्ण । वेष्टन सं० १५ १७१ प्राप्ति स्थान - दि० जैन पंचायती मन्दिर अलवर । १८१. प्रतिसं० १२ । पत्रसं० ६६१ । ले० काल - X 1 अपूर्ण देन सं० १४५ | प्राप्तिस्थान – दि० जैन मन्दिर नेमिनाथ टोड़ा रासिह टोंक । विशेष - ६५० के प्रागे के पत्र नहीं हैं । १८२ प्रति सं० १३ । पत्रसं० १३४६ । ले० काल सं० १९९२ सहवा बुदी ८ । पूर्ण । नेतृन सं० १ । प्राप्ति स्थान - दि० जैन बड़ा मन्दिर फतेहपुर (शेखावाटी ) विशेष- यह ग्रन्थ ४ वेष्टनों में क्षपणासार सहित है । पं० सदासुखदासजी करवाई थी । बंधा है । टीका का नाम सम्यक्ज्ञान चन्द्रिका है। लब्धिसार कासलीवाल ने उधव लाल पाण्डे चाकसू वालों से प्रतिलिपि १८३. प्रतिसं० १४ । पत्र सं० १२६५ । ले० काल सं० १८६० मात्र बुदी ११ । पूर्ण । वेटन सं० १५/६१ । प्राप्ति स्थान दि० जैन पार्श्वनाथ मन्दिर इन्दरगढ़ । विशेष- सम्यक्ज्ञान चन्द्रिका टीका है संदृष्टि भी पूरी दी हुई है। यह ग्रन्थ तीन वेष्टनों में बंधा हुआ है। १८४. प्रतिसं० १५ । पत्रसं० ७६-३६५ । आ० – १२x६ इच । ले० काल - X । अपूर्ण वेष्टन सं०४-३८ । प्राप्तिस्थान - दि० जैन मन्दिर बड़ा बीस पंथी दौसा । १८५. गोम्मटसार भाषा - X। पत्र सं० २५ । ले० काल - X | अपूर्ण वेष्टन सं० ७८५६ प्राप्ति स्थान – दि० जैन मन्दिर भावना (राज० ) i व १८६. गोम्मटसार ( कर्मकाण्ड) भाषा - हेमराज | पत्रसं० ६६ । आ० १४८ भाषा - हिन्दी | विषय - सिद्धांत । २० काल - १७३४ श्रासोज सुदी ११ ले० काल सं० १६५४ । पूर्ण । वेष्टन सं० १४/१६ | प्राप्तिस्थान | दि० जैन पंचायती मन्दिर अलवर |
SR No.090396
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages1446
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size30 MB
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