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________________ नीति एवं सुभाषित ] बांमरण होय पण खावो । क्षत्री होय रिग में भागो जाय ॥२०॥ कामय हो र यो मूर्त । एती वाहीन तोलें ॥२१॥ भानुविसार तो विचार । प्रान माइग्रा संसार || भरपा रजकरो परिवार संजुता ॥२२॥ इति वृधप्रकाश राम संपूर्ण । _६५९६, भर्तृहरि शतक - भर्तृहरि । पत्र सं० ३३ । आ० १०३x४३ संस्कृत विषय सुभाषित २०० काल सं० १८९६ पौष गुदी ७ पूर्ण प्राप्ति स्थान — भ० दि० जैन मन्दिर अजमेर । विशेष – १३ व १४ को ६६०१. प्रतिसं० ३ स्थान- उपरोक्त मन्दिर । ६६०० प्रतिसं० २ । पत्रसं० १२ । ५ श्र० १०५ इव । ले० काल x 1 अपूर्ण बेन सं० १२०० प्राप्ति स्थानम० दि० जैन मन्दिर अजमेर । नहीं है। पत्रसं० २० से० काल X पूर्ण सं० १२०२ । प्राप्ति [ ६९१ इश्व | भाषा वेष्टन सं० ६७२ ॥ ६६०२. प्रतिसं० ४ ० २७ ०६४ इन्च । ले०काल सं० १७२९ । पूर्ण वेष्टनसं०] १३२८ प्राप्ति स्थान- भ० दि० जैन मन्दिर अजमेर | ६६०३. प्रतिसं० ५३ पत्र सं० २-४५० काल X अपूर्ण वेन सं० ७७ प्राप्ति स्थान- दि० जैन तेरहपंथी मन्दिर बसवा ६६०४. प्रतिसं० ६ । पत्र संख्या ३५ । ले० काल X। पूर्ण वेन संख्या ७५ प्राप्ति स्थान- दि० जैन पंचायती मन्दिर हम्डावालों का डीग । विशेष संस्कृत टीकसहित हैं। ६६०५. प्रतिसं० ७ । पत्र सं० २० ॥ श्र० १२४६ इञ्च । ले०काल x । पूरा वेष्टन स १२६ प्राप्ति स्थान दि० जैन मंदिर प्रादिनाथ बूंदी। - विशेष तक शय है। ६६०६. प्रतिसं० पत्र सं० ३५ आ० २ X ५ इन्च से० काल सं० १८०४ । पूर्ण वेष्टन सं० २३५ प्राप्ति स्थान दि० जैन पानाथ मन्दिर चौगान बूंदी। विशेष— मूल के नीचे गुजराती में अर्थ भी है। ६६०७. प्रतिसं० १ पत्र सं० २१ बुदी पूर्ण वेष्टन स० १० प्राप्ति स्थान विशेष – गोठडा ग्राम में रूप विमल के ० ११४५ इञ्च ले० काल सं० २०६६ वैशाख दि० जैन मन्दिर दबलाना (बूंदी) शिष्य माग्य विमल ने प्रतिलिपि की थी ।
SR No.090396
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages1446
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size30 MB
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