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________________ विषय --विलास एवं संग्रह कृतियां ६३१८. आगम विलास-चानतराय। पत्र सं० ३६२ : प्रा० १.x६ इञ्च । भाषाहिन्दी पद्य । विषम- संग्रह । र काल सं० १७८४ । ले० काल सं० १८३९ । पूर्ण । वेश्न सं०५६-३७ । प्राप्ति स्थान—दि. जैन मन्दिर कोटडियों का दूगरपुर । विशेष—कृष्टयागढ़ में श्वेताम्बर श्री कन्हीराम भाऊ ने प्रतिलिपि की थीं। इसका दूसरा नाम धानत क्लिास भी है। ६३१६. कवित्त-x.1 पत्र सं० ६ । प्रा०६:४४. इच 1 माषा-हिन्दी पद्य 1 विषयसभाषित। र० काल x ले. काल X । अपूर्ण । वेष्टन सं० २८। प्राप्ति स्थान-दि. जैन मन्दिर दबलाना (बू'दी) ६३२०. कवित्त-बनारसीदास पसं०१ मा०:०४४ स! भाषा-दिन्टी । विषयफटकर 1 र०काल x |ले. काल x | अपर्ण | बेन सं० २१२ । प्राप्ति स्थान -दि. जैन मन्दिर पालना (दू दी) विशेष-दो कवित्त नीचे दिये जाते हैं - कंचन भंडार पाय नैक न मगन हजे । पाव नत्र योवना न हूने ए बनारसी। काल अधिकार जाग जगत बनारा सोई। कामनी कनक मुद्रा दुहुंकू बनारसी। दोउ है विनासी सदैव तू है अविनासी। जीव याही जगतबीच पइड्रो बनारसी। याको तू संग त्याग कूप सू निकास भागी । प्राणि मेरे कहे लागी कहत बनारसी। किते गिली बैठी है डाकिरणी दिल्ली । इत मानकरी पति पंडम सु। पृथ्वीराज के संगी महाहित हिल्ली । हेम हमाऊ अकबर बञ्चर । साहिजिहा सुभी कोनी है भल्ली । साहि जिहा सुखी मन रंग।
SR No.090396
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages1446
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size30 MB
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