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________________ रास, फागु वेलि ] [ ६३३ ६१५३. जम्बूस्वामोरास–ब्रह्म जिनदास । पत्र सं०७३ । प्रा० १०x४३ इञ्च । भाषाराजस्थानी पद्य । विषय-बाथा । र० काल X । लेकाल सं० १९२१ पौष बुदी १२ । पूर्ण । धेष्टन सं०६। प्राप्ति स्थान—दि. जैन मन्दिर राजमहल (टोंक)। विशेष-सयान १९२१ वर्षे पोस बदी ११ शुक्रवासरे श्री मूलसंधै सरस्वतीगछे बलात्कारगणे श्री कुन्दकुन्दाचार्यान्वये भट्टारक श्री १०८ रनचन्दजी तत्पट्टे भट्टारक जीश्री १०८ देवचन्द्रजी तत्पट्टे भट्टारक श्री १०८ चम्मचन्द्र जी तत् शिष्य ब्रह्म गोकल स्वहस्ते लखीता । स्त्र ज्ञानावणी कर्म क्षयार्थ । ५१५४. जम्बूस्वामी रास-लयविमल । पत्र सं० २४ । प्रा० ११४४ इञ्च । भाषा-हिन्दी (पद्य) । विषय-कया । र०काल X । ले० काल x । पूर्ण । वेष्टन मं० ३३३ । शप्ति स्थान--दिक जैन मन्दिर बोरसली कोटा। ६१५५. जिनदत्तरास-रत्नभूषण। पत्र सं० ३० | प्रा. १०३४५६ञ्च 1 भाषा-हिन्दी (पद्म)। विषम-कथा । र०काल X । ले. काल X । पूरा । वेष्टन स० १६६ 1 प्राप्ति स्थात-दि. जैन अग्रवाल मन्दिर उदयपुर । विशेष—पादिमाग निम्न प्रकार हैं सकल सुरासुर पद नमि नम्रते जिनवर राय गणधरजी गोतम नमू, बहु मुनि सेवित पाय ॥१॥ सूखकर मारिंग वाहनी, भगवती भवनी तार । लेह तणा चरण कमल नमजे वेणा पुस्तक धार ॥२॥ श्री ज्ञानभूषण ज्ञानी नमू, नमूसुमति कीर्ति सुरिंद । दक्षण देशनो गछपति नम, श्री गुरु धर्मचन्द ॥३॥ एह तरणा चरण कमल नमि, कहं जिनदत्तचरिउ विचार । भवियण जनसहू सांभलो, जिम होय हरिष अपार 1॥४॥ अन्तिम भागमूलसंघ मरसतीगछि सोहामणो रे, कांई कूदकु दयति राय। तिणि अनुकारी ते बलात्कारगणी, जाणीएरे ज्ञान भूषण नमि पाय ।।१।। श्री सूरियर रे सुमति की रति पदनमीरे नमी श्री गोर धमचन्द्र । श्री जिनदत्त रास करिवा मनि उपम्रो रो, काइ एक दिवासी मानद ।। देवि सरस्वती गुरू नीमि कीधी रास सार । डपो होइ ते साधज्यो पूरो करज्यो सुविचार । श्री हाँसोट नगरे सुहाम थी आदि जिनंद भयतार । तिणि नयरे रचना रची श्री जिन सासनि शूगार।
SR No.090396
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages1446
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size30 MB
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