SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 691
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ • विषय -- रास, फागु वेलि ६१३३. अजितनाथ रास-द्र० जिनदास । पत्र सं०४० । आ. १२४४६ इञ्च । भाषाहिन्दी (पद्य)। विषय-रास । २० काल X । ले०काल x 1 प्रखं । बेष्टन सं० २२४ । प्राप्ति स्थान-- दि जैन अग्रवाल मंदिर उदयपुर । विशेष-आदि अन्त भाग निम्न प्रकार हैप्रारंभ-वस्तु छंद 'अजित जिनेसर, अजित जिनेसर । पाय प्रणामि सुतीर्थकर अति निरमला मन बांछित फलदान मुभकर । गराधर स्वामी नमस्कर सरस्वति स्वामिरिण ध्याऊ निरमर । श्री सकलकीरति पाय प्रगमि त्रिभुवन कीरति भवतार । रास · करिमृहुं निरमलो ब्रहा जिरणदास तरिगसार भास यशोधर भवियण भावेइ सुगरख चंग मनिधारे ग्रानन्द । यजित जिणेसर चारित्रसार कह गुणचन्द ।। अन्तिम श्री सकलकीरति गुरु प्रणमीने मनि भवन कीति भवतार । रोस कीघो में निरमल .. अजित जिणेसर सार .. . . पढई गुणइ जे सांभलइ मनि धरि अविचल भाव । तेहनइ रिद्धि परगणा पाम शिवपुर दामी ।। जिण सासगा अति निरमलु भत्रि भवि देउ मुझसार ।। ब्रह्म जिरिणदास इम वीनवेइ श्री जिपवर मुगति दातार । इति श्री अजित जिलानाथ रारा समाप्त । ६१३४. अमरदस्त मित्रानंद रासो-जयकोत्ति । पत्र सं० २७ । प्रा० १२ x ६ इञ्च । भाषा-हिन्दी (पद्य) । विषय - रासा साहित्य । २० काल सं० १६५६ । ले. काल x | पुर्ण । वेष्टन सं० १३४ । प्राप्ति स्थान—दि जैन मन्दिर तेरहाथी दौसा । विशेष प्रति नवीन है।
SR No.090396
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages1446
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy