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( बियालीस)
६३ धनकुमार चरित (१०,०००)
": :न्यकुमार भरिउ महाकवि रहव की कृति है । रइधू अपभ्रंश के १५ वीं शताब्दि के जबरदस्त महा कवि थे। अब तक इनकी २० से भी अधिक रचनायें उपलब्ध हो चुकी हैं । धन्यकुमार चरित इसी कवि की रचना है जिसकी पाण्डुलिपि कामा के दि. जैन मन्दिर के शास्त्र भण्डार में संग्रहीत है।
६४ तोध कर माता पिता वर्णन (१०१३७)
. यह संवत् १५४८ फी रचना है जिम में १. पद हैं। इसके कवि है हेमलु जिसके पिता का नाम जिनदास एवं माता का नाम बेल्हा था। वे योलापूर्ण जाति के वणिक थे। इसमें २४ तीर्थ करों के माता पिता, शरीर, भायू आदि का वर्णन मिलता है 1 वर्णन के भाषा एग शैली सामान्य है। यह एक गुटके में संग्रहीत है
जो जयपुर के लश्कर के दि. जैन मन्दिर में संग्रहीत है। . १५ यशोधर चरित (१०१८१)
मनसुखसागर हिन्दी के अच्छे कवि थे । इनका सम्मेदशिखर महात्म्य हिन्दी कृप्ति पहिले ही मिल चुकी है। प्रस्तुत कृति में यशोधर के जीवन पर वर्शन किया गया है। यह संवत् १८५७ की कृति है। इसी संवत् की एक प्रति शास्त्र भण्डार दि० जैन मन्दिर फतेहपुर में संग्रहीत है । यह हिन्दी की अच्छी रचना है। मनसुखसागर को अभी और भी रचना मिलने की संभावना है।
६६ गुटका (१०२३१)
दि. जैम अग्रवाल मन्दिर उदयपुर में एक गुटका पत्र संख्या १८-२९८ है। यह गुटका संवत् १६११ से १६४३ तक विभिन्न वर्षों में लिखा गया था। इसमें १९८ रचनामों का संग्रह है। गुटका के प्रमुख लेखक भट्टारक श्री विद्याभूषण के प्रशिष्य एवं विनयकीति के शिष्य न. धन्ना ये इसमें जितनी भी हिन्दी कुतियां है वे समी महत्वपूर्ण एवं अप्रकाशित हैं। उन्हें कवि ने भिरि, देवपल्ली नगरों में लिखा था। गुटके में कुछ महत्वपुर्ण पाठ निम्न प्रकार है-. ... १ जीयंघररास
निबनकीति रचना काल संवत् १६०६ २. श्रावकाचार
प्रतापकीति ३ सुकमाल स्वामीरास
धर्मरूचि - ४ बाहुबलिवोलि .
शांतिदास ५ सुकौशलरास
सांगु ६ यशोधरवास
सोमकीति ७ भविष्यदत्तरास
विद्याभूषण
। । । । । ।
६७ सट्टारक परम्परा
गरपुर के शास्त्र भण्डार में एक गुटका है जिसमें १४७१ से १८२२ तक भट्टारक सकलकीति की परम्परा में होने वाले भट्टारकों का विस्तृत परिचय दिया गया है। मन प्रथम पागड देश के अभच राज्य में