SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 547
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४०६ ] प्रारम्भ अन्तिम e दोहा-: श्लोक सामि सारदा, सकल कला सुपसिद्ध । बुद्धि ॥१॥ सुसर अलाप मारत हस्ति बजावद बीरा। , दिन दिन अति आद भर, सयल मुरासर लीग || २ || यदि कुमारी बाज लमि ब्रह्म रुद्र हरिभात। अलस अनंत अगोचरी सुयश जगविख्यात ॥ ३॥ कासमोर गुलमंडी, सेवक पुरद्द घास। सिद्धि बुद्धि मंगल करइ, सरस बबन उल्हास ॥४॥ श्री सद्गुरू पसाउ र समनुपम नाय जास पसाइ पामीर, मन वंचित सविकाम ||५|| नारी नामि ससिकला तेह तस्सु भरतार | कवि विल्हा गुण व सील सर्वि सुख संपज सो संपत्ति हो । यह भवि परिभत्रि सुख लहर, सीम तो फल जोइ ४७॥ तरां सील प्रभावि आपदा टाली पाप कलंक सील तराइ अधिकार ॥६॥ कवि सुविलासिया सुराज्यो की संक ||८|| एकदिनी पई भराइ एक मनांवर । तास परे निधि विस्तारद्द निसुता सुख संपत्ति कर frरही ता विरह दुख ल मनगमती रस रमणी मिलइ ॥ 'समझई श्रोता चतुर सुजाण । मूरिख म णहइ भाग बजाए ॥ सुमाणामि गोठ की, लाडु विहं परे अहूरा पूरा करइ पूरा ग्रामो रे ॥४॥ [ ग्रन्थ सूची- पंचम भा असूखनाराध्य सुखतरमाशव्यते विशेषज्ञः । शानलविदा ब्रह्मनि जति ५॥ वर पर्वत श्रत वनचरः सह । या संसर्गः सुरेन्द्रभवनेष्वपि ॥६॥ मूर्खजनसंसर्ग पंडितोजी नर शत्रु मा मूर्ती हितकारक "बानरेण हतो राजा मित्रा पौरेण रक्षितः ॥७
SR No.090396
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages1446
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy