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________________ कपा साहित्य.] [ ४७३ राक्षस राजा राजकरी वस्राउ अवसर जाणी। तप संयम तराउ अवसर जागी। पुण्य प्राणी देव राक्षस सुत भरसी। राज मापी ग्रही संयम लही मोक्ष सोहामणी ।। असंख्याता दुपा भूपति समइ दशया जिन तणा। कीत्ति धवल नरेंद्रनी कर राय आडवर धराइ ॥१८॥ अन्तिम संवत्र सोलं असीईरे, आछउ आसो मास तिथि तेरसि । छतरपुर माहि पारणी अति उल्हास, सीता याव रे धरि राग ढाल।। विद्वय गछि गछ नायक गिरड गोतम नउ अवतार । विजयवा विजय ऋषि राजा कीधज धर्म उद्वार ।। धर्म मूनि धर्म नउ धोरी धर्म तो भडार । खिमा दया गूरण केरउ सागर सागर क्षेम उदार HERI श्री गुरु गध मुशीर मोटी बहन वंश । चउरासी गाल में जारणी तउ प्रगट पराइ' परसंस ॥१२॥1 तस पटोधर गुगाकरि गाज गुण सागर जयवंत । कइनूतन कलप तरु कलि में सूरि शिरोमरिंग संत ॥१३॥ ए गुरुदेव लगौ सुपसाइ ग्रंथ नदिउ भूप्रमाण । प्रध गुणे गिरि मेरु सरीखउ नवरस मांहि बखाण ||४|| एवं वासवि ढाल सुवति वचन रवन मृविसाल । रामयशो रे रसायण नामा मय निउ सरसाल ।। कवि जन त कर जोडि करे रेपडित सुभरदास । पांचा मागे तउचिव जण प्रणा प्रध्यास । अक्षर भंगे वाल जु भंगे राज भंग जोइ । वाचतारे चमन ने भगे रस नहीं उपजइ कोह।।७१| अमर जाणी टालज जांणी कागज जाणी एह । पांचा पारे वाचतां थो आजि सिइ अति नेह ।।१८।। जत्र लग सायर नउ जल यां जब ला सूरिज बद । केशराज कहैं राब लगि नय करउ आनंद IIEI कानडा रामलक्ष्मण ने रावण सती गीतानी चरी। कही भापा चरित साखी बचन रचन करी खरी ।। संघ रग विनोद वक्ता अने श्रोता राख मणी । केशराज मुनिद जपे सदा हर्ष बामणी ॥३०॥
SR No.090396
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages1446
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size30 MB
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