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________________ I ( बालीस ) ८४ श्राराधना प्रतिबोधसार (६६४९) यह कृति भ० विमलकीति की है जो संभवतः भ० सफलकीति के पश्चात् गादी पर बैठे थे लेकिन अधिक दिनों तक उस पर टिके नहीं रह सके। इस कृति में ५५ छन्द है कृतिना पर अच्छी सामग्री प्रस्तुत करती है। इसकी भाषा अपभ्रंश मय है । 1 ८५ सुकौशल रास (१६४९) हो हो अप्पा गुण गंभीर हो, परमध्या परमवछेद परमप्पा देवल देव, हो, श्रप्पा संयम जाण । अप्पा शिव पद वार ।।५१|| परमणा अकल प्रभेद इस जारी मप्या सेव । ५२ ।। मह सांसू कवि की रचना है जो प्रमुख रूप से चौपई छन्द में निबद्ध है। प्रारम्भ में कवि का नाम सांगु भी दिया गया है। इसी तरह कृति का नाम भी "सुकोमल रास च दिया है। कवि ने धपने नामोल्लेख के पतिरिक्त अन्य परिचय नहीं दिया है और न अपने गुरु परम्परा का ही उल्लेख किया है। राम की भाषा सरस एवं मुबोध है। एक उदाहरण देखिये- भजोध्या नगरी प्रति मली. उत्तम कहीइ ठाम । राज करि परिवार सु, कीसि बबल तस नाम ।।१०।। तस पारि राणी रूपी रूपयंत सुद से सहि देखी नामि सुग्गु भक्ति मरतार विवेक ॥१११ ८६ बलिभद्र चौपई (९६४६) यह चीप काव्य ब्रह्म शोवर की कृति है जिसमें हालाका महापुरुषों में से बलिभद्रों पर प्रका डाला गया है। इसका रचना काल सवत १५८५ है । स्कंध नगर के प्रजित नाथ चैत्यालय में इसकी रचना की गयी थी । व० यशोधर म० रामदेव के अनुक्रम में होने वाले भट्टारक यशः कीर्ति के शिष्य थे । चपई में १०६ पद्य है । संवत पनर पच्यासई, स्कंत्र नगर मारि । भवणि प्रजित जिनवर र ए गुण गाया सार ॥१८॥ ८७ यशोधरस (१६४६) यह सोमकीति का हिन्दी काव्य है जिसमें महाराजा यशोधर के जीवन पर प्रकाश डाला गया है । रचना गुढली नगर के शीतलनाथ स्वामी के मन्दिर में की गयी थी । सारा काव्य दश ढालों से जिभक्त है । ये डा एक रूप से सर्ग का ही काम देती है इसकी भाषा राजस्थानी है जिसमें कहीं कहीं गुजराती के शब्दो का भी प्रयोग हुधा है। रास की संवत १६०५ की पाण्डुलिपि दीनगर के मन्दिर केगुटके में उपलब्ध होती है। +
SR No.090396
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages1446
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size30 MB
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