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________________ कथा साहित्य ] [४४६ সাম— पहिल परणमीय पय कमल वीर जिरादह देव । भविम सुरणी पन्ना तरणो वरिय भएपउ खेवि जिणवर चिह परिभासीउ सास रिण निम्मल चम्म । तिह धुरि पंससिउ जिह तूटइ सदि कम्म ॥२।। पत्र पर वय वचन मनि हरषिवो निसिभरि धनसार । नीसरियो मागलि करी, सहयइ परिवार ॥६५|| गामि २ परि २ करइ जिउ काम वरांक । तऊन पूरउ हुव परउ, घिग घिग कर्म विपाक । अन्तिम पाठश्री उबएस गछ सिणगारो, पहिलाउ स्वरपप्पह गणधारो। गुण गोयम अवतारे ।। जख एब सूरिद प्रसीउ, तासु पट्टि जिणि जगि जसु लीयो । संयम सिरि उरिहारो॥२७।। अनुक्रमदेव गुप्ति सूरीच, सिद्ध मूरि नमहि तसु सीस । ___ मुनिजन सेविय पाय। तासु पट्टि संयम जयवंतज, गछनायक महि महिमा बताउ । कक्कमरि गुरुराय ॥२८॥ सयहन्धि व्यापी पतिण गणहारी, गुणवतशील सुन्दर बाणारि । वरीय जेरिण अणंगो। तासु सीस मतिशेखर हरषिहि, पनरहसय यादोत्तर पर्ससहि। कीयो कथित अति चंगो ॥२६॥ एह चरित घना नउ भाविहि, भगाई गुणई जे कहइ कहावइ । जे संपत्ति देइ दान । ते नर मन वंछिय फल पायई । धरि बइठा सवि संपद प्रावइ । विलसद नवई रिधान ॥३०॥ इति चना चउपई समाता। संवत् १६४० ...... बुदी ६ शनिवारे । खेतइ रिपनो भाइई लिख दीइ ।। ४४२६. धर्मपरीक्षा कथा-देवचन्द्र । पत्रसं० २८। प्रा० १२४५ इंच । भाषा-संस्कूल । विषय कथा । र. कालx1ले. काल सं० १६५५ फागन सुदी २१ वेष्टन सं० १२२ । प्राप्ति स्थान - दि जैन मन्दिर लपकर, जयपुर । विशेष-जगन्नाथ ने प्राचार्य लक्ष्मीचन्द के लिए प्रतिलिपि की थी ४४३०. कथा-४ । पत्रसं०८-१३० । प्रा० ७४५ इच । भाषा-हिन्दी । विषय-कथा । २० कालxले. काल सं० १८५२ बैशाख बुदी । पूर्ण । वेष्टन सं०७० । प्राप्ति स्थान-दि. जैन मदिर प्रादिनाथ दी। ।
SR No.090396
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages1446
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size30 MB
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