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चौतीस )
६० ध्यानामृतरास (६१७०।
यह एक प्राध्यात्मिक रास है जिसमें ध्यान के उपयोग एवं उसकी विशेषताओं के बारे में विस्तृत प्रकाश डाला गया है। रास के निर्माता है व करमसी। जो भद्रारक शुभचन्द्र के प्रशिष्य एवं मुनि दिनयचन्द्र के शिष्य थे। रास की भाषा एवं शैली सामान्य है। कवि ने अपना परिचय निम्न प्रकार दिया है...- : :
जिन सासरण चिरंजीवि पत्र पयासरा सूर । खउबिह संष सदा जयो विधन जायो तुम्हें दूर ।। श्री शुभचन्द्र मूरि नमी समरी विनयचन्द्र मुनिराय । निज बुद्धि अनुसरि रास क्रियो ब्रह्म करमसी हरसाय ।।
६१ रामरास (६२०४}
रामरास कविवर माधवदास की कृत्ति है। यह कृति वाल्मीकि रामायण पर प्राधारित है। रचना संबस नहीं दिया हुआ है लेकिन रास १७ वीं शताब्दी का मालूम पड़ता है। मंवत् १७६८ की लिखी हुयी एक 'याण्डलिपि दि० जैन खण्डेलवाल मन्दिर उदयपुर में संग्रहीत है।
६२ प्रेरिणकप्रबंधरास (६२२४)
यह ब्रह्म संघजी की रचना है जिसे उन्होंने संवत् १७७५ में समाप्त की थी। कवि ने अपनी कृति को प्रबंध एवं रास दोनों लिखा है। यह एक प्रबंध काव्य है और भाषा एवं शैली की दृष्टि में काव्य उल्लेखनीय है। भगवान महावीर के प्रमुख उपासक महाराजा रिपक का जीवन का विस्तृत वर्णन किया गया है। रचना प्रकाशन योग्य है।
६३ सुकौशलरास (६२३५)
धपीदास भट्टारक विश्वसेन के शिष्य थे। सुकोमल रास उन्हीं की रचना है जिसे उन्होंने १७ वी सातादी में निबद्ध किया था। यद्यपि यह एक लघु रास है लेकिन काव्यत्व की दृष्टि से यह एक अच्छी कुति है।रास की पाण्डुलिपि प्रहमदाबाद के शान्तिनाथ चैत्यालय में संवत् १७१४ की माप मुदी पंचमी को की गयी यी जो याजकलहूंगरपुर के शास्त्र भण्डार में संग्रहीत है।
६४ वृहदतपागच्छ गुरावली (६२६८, ६२६६)
__ श्वेताम्बरीय तपागच्छ में होने वाले साधुनों की विस्तृत पट्टावली की एक प्रति दि. जैन अग्रवाल पचायती मन्दिर अलवर और एक प्रति पंचायतो मन्दिर भरतपुर के शास्त्र भण्डार में संग्रहीत है। दोनों ही पाण्युनिपियां प्राचीन है लेकिन भरतपुर वाली प्रति अधिक बड़ी है और ४४ पत्रों में पूर्ण होती है। प्रलवर काली प्रति में मुनि सुन्दरमूरि सब के गुरुषों को पट्टावली दी हुई है। जबकि भ्ररतपुर वाली प्रति स्वयं मुनि सुन्दर मूरि की लिखी हुई है और उसका लेखन काल संवत् १४६७ फागुण सुदी १० है।