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________________ vor ] प्रशस्ति गढ अजमेर सकल सिरदार पट नावौर महा अधिकार ॥ नितो भवभाष ॥ सारव गच्छ तर सिंगार । बलात्कार गर जानुसार ।। पट अनेक मुनि सो घप सही ।। तसु पट महेंद्रकीति समुद नीति पर धारि भया तसु पट भूवन पम्प चिरं जीया ॥ विजयकीर्ति भट्टारक जाति । इह भाषा कीनि परशारण || संवत् महारासय सतवीस । फागुण सुबी साते सु अधोस ।। बुधवार इह पूरा भई । स्वति नक्षत्र वृद्धजपामु थई | गोत पाटनी है मनिराव | विजयकीर्ति भट्टारक धाय || उसु पट धारी श्री मूनि जानि बडणाया तमु गोत्र पिखानि ॥ त्रिलोकेन्द्र कीति रिवराज । निति अति साय प्रतम काज ॥ विजयमुनि सिध्य दुतिय सुजाण श्री बैरा देश तमु भार ॥७२॥ धर्मचंद भट्टारक नाम, ठोल्या गोत वण्यो अभिराम । मलयखंड सिहासन सही कारंजय पट सोभा लही प्र । कुन्दकुन्द मुग्यय सही रत्नकीत्ति पट विद्यानंद ४०८६. प्रतिसं० २ पत्रसं०] १२८ २७४ | प्राप्ति स्थान दि० जैन मंदिर पार्श्वनाथ - ४०५८ प्रतिसं० ४ बुदी ७ । पूर्णं । वेष्टन सं० १२७६ ४०८६. प्रतिसं० ५ ख़ुदी १४ | 1 वेन सं० २७६ विशेष- प्रति नवीन है । ४०८७ प्रतिसं० ३ पत्र सं० ७१ ० ५५ X ७ से० काल सं० २०११ पूर्ण श्रेष्टन सं० ४९ प्राप्ति स्थान दि० जैन मन्दिर माविनाथ बूंदी | [ ग्रन्थ सूची- पंचम भाग श्र० ११५] [इ] | ले० काल X पूर्ण ३० नं० चौगान बूंदी। विशेष - जबगढ़ में प्रतिलिपि पत्रसं० ग्रा० २] X ४ | प्राप्ति स्थान- भ० दि० जैन मन्दिर अजमेर । पच सं० था० १० X ४ व काल० १६२६ सावर । । । ले० प्राप्ति स्थान- भ० दि० जैन मन्दिर अजमेर । ធ្ងន់ थी I ० का ० १८६४ फागुण अपूर्ण वेष्टन ०४७-२५ प्राप्ति स्थान ४०६०. प्रति स ० ६ पत्र [सं० ७७ प्रा० १० X ४ ले० काल सं० १८८४ बुदी ३ | पूर्ण वे० सं० ११ । प्राप्ति स्थान - उपरोक्त मन्दिर | विशेष-पद्य सं० २००० है । ४०६१. प्रति सं० ७ पत्र [सं० ६३ से ११७ 1 ० १२३४६इ ले०फाल सं० १८७६ दि० जैन मन्दिर पंचायतीनी (टोंक) । विशेष- दूनी में रावजी श्री चांदसिंह जी के राज्य में माणिकचन्द जी संघी के प्रताप से ओझा हरीनारायण ने प्रतिलिपि की थी।
SR No.090396
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages1446
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size30 MB
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