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५१. होली कथा । ४६०० )
( इकतीस }
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यह मुनि शुभचन्द्र की कृति हैं। प्रदेश के कुजपुर में रहते थे। वहां चन्द्र
आमेर गादी के भट्टारक जगतकीति के शिष्य थे। मुनि श्री स्वामी का मानय था और उसी में इस रचना को दोबद्ध किया गया था । रखना भाषा की दृष्टि से अच्छी कथा कृति है । इसकी रचना धर्मपरीक्षा में वर्णित कथा के अनुसार की गयी है ।
मुनि शुभचन्द्र करी या कथा, धर्म परीक्षा में लो बया । होली कथा सुने जे कोई मुक्ति तशा सूख पावे सोय । संत सतरा पर जोर, वर्ष पचाबन अधिक प्रोर ।। १२६ ॥
५२ वचन कोश (५२३२)
बुलाकीदास कृत वचनकोश हिन्दी भाषा को अच्छी कृति है । कवि की पण्डवपुराण एवं प्रश्नोत्तरोपासकाचार हिन्दी जगत की उत्तम कृतियां है जिन पर ग्रन्थ सूत्री के पूर्व भागों में प्रकाश डाला जा चुका है । वनकोण के माध्यम से जैन सिद्धान्त को कोश के रूप में प्रस्तुत करके कवि ने हिन्दी जगत की महान सेवा को है। इन कुसिका रचनाकाल संवत १७३७ है । यह कवि की प्रारम्भिक कृति है । रचना प्रकाशन योग्य है ।
श्रायुर्वेद
५३ प्रजी मंजरी (५५६२)
न्यामतखां फतेहपुर (शेखावाटी) के शासक क्यामखां के शासन काल के हिन्दी कवि थे । उन्होंने युर्वेद की इस कृति को वैद्यक शास्त्र के अन्य ग्रन्थों के अध्ययन के पश्चात लिखी थी। इससे ज्ञात होता है कि न्यामतवां संस्कृत एवं हिन्दी दोनों ही भाषाओं के विद्वान थे। इसकी रचना संवत १७०४ है । कवि ने लिखा है कि उसने यह रचना दूसरों के उपकारार्थं लिखी है ।
वैद्यक शास्त्र को देखि करो, नित यह कियो बखान । पर उपकार के कारणे, सो यह ग्रन्थ सुखदान ।। १०२ ।।
५४ स्वरोदय (५७९४)
प्रायुर्वेद विषय पर मह मोहनदास कायस्थ की रचना है । यद्यपि इस विषय की यह लघु रक्ता है । नाडी परीक्षा पर भी स्वर के साथ इसमें विशेष वर्णन है। संवत १६५७ में इस रचना को कन्नोज प्रदेश में स्थित नैमखार के समीप के ग्राम कुरस्य के समाप्त किया गया था ।
रास, फागु वेलि
५५ ब्रह्म जिनवास
करा
संशक रचनायें
ब्रह्म जिनदारों संस्कृत एवं हिन्दी दोनों के ही महाकवि थे। दोनों ही भाषाओं पर इनका समान अधिकार था। इसलिये जहां इन्होंने संस्कृत में बड़े बड़े पुराण एवं चरित्र ग्रन्थ लिखे वहां हिन्दी में रास संज्ञक
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