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( अठाइस )
है। इन्हीं के उपदेश से सेवाराम काव्य रचना को ओर प्रवृत्त हुए थे। शांतिनाथ चरित्र हिन्दी का अच्छा काव्य है जो २३० पत्रों में समाप्त होता है। सेवागमदडाइड देश में स्थित देव्याद (देवली) नगर के रहने वाले थे। कवि ने काव्य के अन्त में निम्न प्रकार उल्लेख किया है--
देश ढाड आदि के संबोधे बहुदेश । रची रची ग्रन्थ कठिन टोडरमल महेश। ता उपदेश लवांस लही होबाराम सयान । रच्यो अंष रुचिमान के हर्ष हर्ष अधिकाम ।।२३।। संवत् अष्टादश शतक पृनि चौतीस महान । सावन कृषणा अष्टमी पूरन कियो पुरान । अति अपार सुखसो बसे नगर वेव्याह सार । यापक बसे महाधनी दान पूज्य मतिषार ॥२४॥
४० भोपाल वरिश (४०५०)
श्रीपाल चरित्र ब्रह्म चन्द्रसागर की कृति है जो मट्टारक सुरेन्द्रक ति के प्रशिष्य एवं सकलकीति के शिष्य थे । जो काष्ठासंघ के रामसेन के परम्परा के मट्टारक थे । कवि ने सुरेन्द्रकीति एवं सकलकीति दोनों की प्रशंसा की है तथा अपनी लधुता प्रकट की है। काव्य की रचना सोजत नगर में सवत् १८२३ में समाप्त हुई थी।
सोजण्या नगर सोहामा दोसे ते मनोहार । सासन देवी ने . देहरे परतापुरे अपार । सकलकीति तिहाँ राजता छाजता गुण भंडार । बहा चन्दसागर रचना रची तिहा वेसीमानाहार ।।३।।
चरित्र की भाषा एवं शैली दोनों ही उत्तम है तथा वह विविध छन्दों में निर्मित की गयी है। इसकी एक प्रति फतेहपुर के शास्त्र भण्डार में उपलब्ध होती है।
४१ श्रेणिक चरित्र (४१०३)
श्रेणिक चरित्र महाकवि दौलतराम कासलीवाल को कृति है। अब तक जिन कात्यों का विद्वत जगत को पता नहीं था उनमें कवि की यह कृति भी सम्मिलित है। लेकिन ऐसा मालूम पड़ता है कि कवि के पद्मपुराण, हरिठांशपुराण, मादिपुराण, पुण्शस्त्रद कथाकोश एड अध्यात्मवारहखड़ी जैसी वृहद कतियों के सामने इस कृति का अधिक प्रचार नहीं हो सका इसलिए इसकी पाण्डुलिपियां भी राजस्थान के बहुत कम भण्डारों में मिलती है।
श्रेणिक चरित्र कवि का लघु काश्य है जिसका रचनाकाल संवत् १७८२ चैत्र सुदी पंचमी है।
संवत सतरंस वीत्रासी, श्री चैत्र सुकल तिथि जान । पंचमी दीने पूरण करी, वार चंद्र पंचान ।।