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________________ धर्म एवं प्राचार शास्त्र ] १६६२. प्रतिसं०५ । पत्रसं० २० । श्रा०x४१ इञ्च । लेकाल ४ । पूर्ण । वेष्टन सं. २२५ । प्राप्ति स्थान- दि. जैन मन्दिर दीवानजी कामा । विशेष - प्रति प्राचीन है। १६६३. प्रति सं०६। पत्र स० ५३ । आ० १२४८ इञ्च । ले० काल सं० १९८४। पूर्ण । वेष्टन सं० १७४ । प्राप्ति स्थान-दि० जैन मन्दिर फतेहपुर शेखावाटी (सीकर)। विशेष प्रति टवा टीका सहित है कीमत ८|} है । १६६४. सुनन्दि थावकाचार भाषा-ऋषभदास । पत्र सं० ३४७ । प्रा०६x इश्च । भाषा-हिन्दी । विषम-प्राचार शास्त्र | २० काल सं० १९०७ । ले०काल सं० १९२४ । पूर्ण । वेष्टन सं० ५० 1 प्राप्ति स्थान दि० जैन मंदिर दीवान चेतनदास पुरानी डीग । विशेष-अन्तिम । गर्ग देश भल्लरि प्रथम पत्तन पूर सु अनूप । झालाबार सुहावनी मदनसिंह तसु भूप ॥ पृथ्वीराज सुत तास के सौभितु पद कू पाय । राजकर पालं प्रजा सबही कू सुखदाय ।! तिसि पसन में शांनि जिन राज सबकू शांति । प्राधि व्याधि हा सदा कर्म क्षोभ को भ्रांति ।। ताकी थुति तिय भवन की सोमा कही न जाय। देखत ही अब हरत है सुर सिव मग दरसाय ।। पार्श्वनाथ को भुवन इफ ऋषभदेव को और । नाना शोभा राहित पुनि राजत है इसि ठौर ।। भव्य जीव वंदै सदा पूज भाव लगाय । नर नारी गावें सदा थी जिन गुण हरषाय || तिसी पुरी में ज्ञाति के लोग वस जु पुनीत । तामैं हूंबड़ जाति के बगवर देस जनी ॥ श्री नेमिश्वर दस सुत बाल सोम प्राख्यात । सो चउ भ्रात नियुक्त है ताफे सुत विख्यात ।। नाभिजदास बखानिये ता; मुत दो जानि । तामै श्रेष्ट बखानिये पंडित सुनौ बखानि ।। वासु पूज्य जिन जनम की पुरी राज सुत जानि । .... "फुनि अरुण मुत लघु भ्राता जु कहानि ।। तामैं गुरू भ्राता सही मूल एक तुम जान । राब जैनी में बसत है दो सुत सुत अभिराम ।। ताकू श्री वसुनंदि कृत माम श्रावगाधार । माथा टोका बंध कू पढ़ि व कू सुख कारि ।। भट्टारक आमेर के देवेन्द्र कीति है नाम ।
SR No.090396
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages1446
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size30 MB
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