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( चार )
लेकिन
२५-३० वर्षों से समाज में एक पुनः साहित्यिक चेतना जाग्रत हुई और साहित्य सुरक्षा एवं उसके प्रकाशन की ओर उनका ध्यान जाने या यही कारण है कि या सारे देश में पुनः जैन ग्रंथाकारों के'च सूचियों की मांग होने लगी है। क्योंकि प्रादेशिक भयाओं का महत्वपूर्ण संग्रह पान भी इन्हीं भण्डारों में सुरक्षित है। विश्वविद्यालयों में जेन मावायों एवं उनके साहित्य पर रिसर्च होने लगी है क्योंकि माज के विज्ञान एवं शोधार्थी साम्प्रदायिकता की परिधि से निकल कर कुछ काम करना चाहता है। इसलिये ऐसे समय में ग्रंथ यूनियों का प्रकाशन एक महत्वपूर्ण कार्य है प्रस्तुतप्रभ सूची में राजस्थान के जिन शास्त्र भण्डारों का विवरण दिया गया है उनका परिचय निम्न प्रकार है-
शास्त्र भण्डार भट्टारकीय वि० जैन मन्दिर अजमेर
भट्टारकीय वि० जैन मन्दिर अजमेर का शास्त्र भण्डार राजस्थान के प्राचीनतम ग्रंथ भण्डारों में से एक है। इस ग्रंथ भण्डार की स्थापना कब हुई थी तो निश्चित खोज नहीं हो सकी है किन्तु यदि भट्टारकों की गादी के साथ शास्त्र भण्डारों की स्थापना का संबंध जोड़ा जाये तो यहां का शास्त्र भण्डार १२ वीं शताब्दी में ही स्थापित हो जाना चाहिये, ऐसी हमागे मान्यता है क्योंकि संवत् १९६० में मट्टाएक विशाल कीर्ति प्रथम मट्टारक के रूप में यहां की गादी पर बैठे थे। इसके पश्चात् १६ वी शताब्दी से तो अजमेर भट्टारकों का पूर्णतः केंद्र बन गया इस भट्टारकों ने पाण्डुलिपियों के लिखने लिखाने में अत्यधिक योग दिया और इस ममद्वार की अभिवृद्धि की मोर खून कार्य किया।
इस भण्डार को सर्व प्रथम स्व० श्री जुगलकिशोरी मुकार एवं पं० परमानन्दजी शास्त्री ने वहां कुछ समय ठहरकर देखा था किन्तु वे इस की ग्रंथ सूची नहीं बना पाये इसलिए इसके पश्चात् विलम्वर १६५ मैं हम लोग वहां गये और पूरे पाठ दिन तक ठहर कर इस हार की ग्रंथ सूची तैयार की।
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इस मण्डार में २०१५ हस्तलिखित ग्रंथ एवं गुटके हैं। कुछ ऐसे अपूर्ण एवं स्फुट पत्र वाले भ भी हैं जो सम्पूकों में भरे हुए हैं लेकिन समयाभाव के कारण उन्हें नहीं देखा जा सका। शास्त्र भण्डार मैं संस्कृत, प्राकृत अपन एवं हिन्दी इन चारों भाषायों के ही अच्छे मंच हैं। इनमें प्राचीन पांडुलिपि समयसार प्राभृत की है जो संवत् १४९३ की लिखी हुई है। यह प्राकृत भाषा का ग्रंथ है और आचार्य कुंदकुद की मौलिक कृति है। इसके अतिरिक्त त्मानुशासन टीका (प्रमाचन्द्राचार्य) हरिवंश पुराण (ब्रह्म दास) सागार धर्मामृत (आहार), धर्मपरीक्षा (पति), सुकुमाल चरित्र (२० सकल कीर्ति) की प्राचीन पा लिपियां महापं घासावर का 'अध्यारव रहस्य' एव भीतसार समय (युवनदास विजयस्तोत्र (मेथी) पासचरित्र (जपान) की ऐसी पाटलिपियां हैं जो प्रथम बार इस भण्डार में उपलब्ध हुई हैं। हिन्दी की कितनी हो ऐसी कृतियां उपलब्ध हुई हैं जो साहित्य की दृष्टि में अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं । भगवतीदास की रचनाएं जिनमें 'श्रीतारातु' 'शील बसीसी' रात्रमती गीत, धर्मलपुर जिन बंदना, सजावली, मनमा गीव' 'राज बनजारा मती नेमीश्वररास' के नाम उल्लेखनीय हैं, और एक ही गुटके में अन्य हुई है। ठाकुर कवि का शांति पुराण (संवत् १६५२) हिन्दी का एक अच्छा काव्य है कवि का बुद्धि प्राण' तथा दूधशन का 'सृजनकीर्ति गीत' एवं 'धर्मकीर्ति गोत' इतिहास की दृष्टि से भी अच्छी रचनाएं है। इसके अतिरिक्त भण्डार में 'सामुद्रिक पुरुष लक्षण' की है, दिराको लेखक प्रमास्ति संवत् १७२२ भादवा सुदी १४ की है और उसमें यह लिखा हुआ है कि इस प्रति को ओवनेर में पंडित टोडरमल के पहनाये प्रतिलिपि की गई थी। इससे महा पं० टोडरमलजी के