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अस्तित्व हमारे सामने आया है, इसलिये राजस्थान में दिगम्बर एवं श्वेताम्बर शास्त्र भण्डारों की संख्या की जाये तो वह २०. से कम नहीं होनी चाहिये। श्वेताम्बर शास्त्र भण्डारों की ध सूचियां एवं उनका सामान्य परिचय तो बहुत पहिले मुनि पुष्यविजय जी, मुनि जिनविजयजी एवं थी अगरचन्द जी नाहटा प्रति विद्वानों ने साहित्यिक जगत को दे दिया था लेकिन दिगम्बर जैन मन्दिरों में स्थापित शास्त्र भण्डारों का परिचय देने एवं उनकी ग्रंथ सूची बनाने का कार्य अनेक प्रयत्नों के बावजूद सन् १९४७ के पूर्व तक योजना बट तरीके से प्रारम्भ नहीं किया जा सका। यद्यपि पं० परमानन्द जी शास्त्री, स्व. पं० जुगलकिशोर जो मुख्तार एवं श्रद्धेय स्व० पं० चैनसुखदासजी न्यायतीर्थ द्वारा इस पोर लोगों को बराबर प्ररशाए' दी जाती रही लेकिन फिर भी कोई ठोस कार्य प्रारम्भ नहीं किया जा सका । पाखिर ५०चनसूखदासजी न्यायतीर्थ को बार बार प्रेरणानों के फलस्वरूप श्रीमहावीर क्षेत्र के तत्कालीन मंत्री श्री रामचन्द्रजी साखिन्यूका ने इस दिशा में पहल की तथा क्षेत्र की भोर से साहित्य शोध विभाग की की गयी। मार मार दिनों में स्थित शास्त्र भण्डारों को अंथ सूची का कार्य प्रारम्भ हवा । इसके पश्चात व सुचियों के प्रकाशन का कार्य प्रारम्भ किया गया और सन् १९४६ में सर्व प्रथम राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारों की मष सूची प्रथम माग (मामेर शास्त्र महार की अथ सूखी) प्रकाशित हुपा। इसके पश्चात् तीन भाग और प्रकाशित हो चुके हैं जिनमें बीस हजार से भी अधिक मथों का परिचयात्मक विवरण दिया जा चुका है।
प्रय सूची का पांचवां भाग विद्वानों एवं पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है। इसमें जयपुर नगर के शास्त्र मण्डार दि. जैन मन्दिर लश्कर को अतिरिक्त सभी शास्त्र भण्डार राजस्थान के विभित्र नगरों एवं कस्बों में स्थित है। प्रस्तुत माग में ४५ शास्त्र भण्डारों में संग्रहीत २० हजार से भी अधिक पाण्डुलिपियों का परिचयात्मक विवरण दिया गया है। एक ही भाग में इतनी अधिक पाण्डुलिपियों का परिचय देने का हमारा यह प्रथम प्रयास है। इन शास्त्र भण्डारों की सूचीकरण के कार्य में हमें दस वर्ष से भी अधिक समय लगा। एक एक भण्डार को देखना, वहां के ग्रथों की धूल साफ करना, उन्हें सूची बद्ध करना, अस्तव्यस्त पत्रों को व्यवस्थित करना, पुराने एवं जीणं शीर वेष्टनों को नये वेष्टनों में परिवर्तित करना, महत्वपूर्ण पाठों एवं प्रशस्तियों को प्रति लिपि तैयार करना, पूरे ग्रंथ भण्डार को व्यवस्थित करना आदि सभी कार्य हमें करने पड़े और यह कार्य कितना श्रम साध्य है इसे मुक्त भोगी ही जान सकता है। फिर भी, यह कार्य सम्पन्न हो गया हम तो इसे ही पर्याप्त समझते हैं क्योंकि कुछ ऐसे शास्त्र भण्डार भी हैं जिन्हें पचासों वर्षों से नहीं खोला गया और उनमें कितनी २ साहित्यिक निधियां विद्यमान हैं इसे जानने का कभी प्रयास ही नहीं किया ।
इस प्रथ सूची में बीस हजार पाण्डुलिपियों के परिचय के अतिरिक्त सैकड़ों प्रध प्रशस्तियों, लेखक प्रशस्तियों तथा प्रसभ्य एवं प्राचीनतम पाण्डुलिगियों का परिचय भी दिया गया है। इस सूची के अवलोकन के पश्चात विद्वानों को इसका पता लग मकेगा कि सैकड़ों ग्रयों की कितनी २ महत्त्वपूर्ण पालिनियों की जानकारी मिली है जिनके बारे में साहित्यिक जगत अभी तक अन्धेरे में था। कुछ ऐसे ग्र'थ है जिनकी पाण्डुलिपियां राजस्थान के प्रायः सभी शास्त्र भण्डारों में उपलब्ध होती है जो उनकी लोकप्रियता को द्योतक है। स्वयं ग्रयकारों की मूल पाण्टुलिपियों की उपलब्धि भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। इन पाण्डुलिपियों के प्राधार पर प्रकाशन के समय पाठ भेद जैसा दुरूह कार्य कम हो जायेगा और पाठ को प्रामाणिकता में उहापोह नहीं करना पड़ेगा 1 महापंडित टोडरमल के प्रात्मानुशासन गाषा को विभिन्न भण्डारों में ४८ प्रतिलिपियां संग्रहीत हैं इसी प्रकार मनोहरदास सोनी की धर्मपरीक्षा की ४७ पाण्डुलिपियां, किशनसिह के क्रियाकोश की ४५, यानतराय के चर्चाशतक की ३७,