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[अन्य सूची-पंचम भाग
१०६०४. लीलावती भाषा-लालचन्द सूरि । पत्रसं० २८ । प्रा० ११४५३ इन्छ । भाषाहिन्दी (पद्य) । विषय-ज्योतिष-गणित । र०काल सं० १७३६ अषाढ बूदी५ । ले०काल सं०१९०१ पुणे । वेष्टन सं० ६३ । प्राप्ति स्थान-दि० जन प्रोटा मन्दिर (बयाना)
विशेष-प्रथ का भादि अन्त भाग निम्न प्रकार हैप्रारम्भ
शोभित सिन्दूर पूर गज सीस लीका। नूर एक सुन्दर विराज भाल चन्द जु सूर कोरि कर जोरि अभिमान दूरि छोरि प्रणमत जाके पर पंकज अनन्दन । गौरीपूत सेवै गोउ मन बित्यो, पार्य रिद्धि सि सिद्धि होत है प्रखंष्टजू । विधन निवार संत लोक कूसुधार ऐसे गणपति देव जय जय सुखकंदजू ।।१।।
वोहा गणपति देव मनाय के सुमरि बात सुरसति भाषा लीलावती करू' चतुर सुरणो इक चित्त ।।२।। थी भास्कराचार्य कृत संस्कृत भाषा सप्तसती ।।
लीलावती नाम इस कपरि सिद्ध ॥३॥ अन्तिम पाठ
संपुरण लीलावती भाषा में भल रीति । जयु कीधि जिणदिन मुई तिको कहै धरि प्रीति ।। सतरासं छत्तीस समै वदि अषाढ बस्लान । पात्रम तिथि बुधवार दिन अथ संपरा जान ।। गुरु मा पाउरासी गच्छ गच्छ खरतर सुवदीत । महिमंडल मोटा मनुष्य पूरी कर प्रतीत ।।११।। गछनायक गुणवंत अनि प्रकट पुन्य अंकूर । सोभागी सुन्दर बरण श्री जिनचंद सुरिंद ॥१२॥ सेवग तासु सोभागनिधि खेम साख मुखकार । शांति हर्ष वाचक भन्यो अस सोभाग्य अपार ।।१३।। शिष्य तास सुविनीत मति लालचन्द इण नाम । गुरु प्रसाद कीबो भली प्रथ भण्या अभिराम ।।१४।। भला शास्त्र यद्यगि भला तो परिण चित्त उल्टास । गणित शास्त्र भूरि अन्ति लगि कीयो विशेष अभ्यास ॥१५॥ बीकानेर बाटो सहर चिहु दिस में प्रसिद्ध । घरघर कचन घन प्रबल घरघर ऋद्धि समद्धि ॥१६॥